google.com, pub-9449484514438189, DIRECT, f08c47fec0942fa0 हिन्‍दी ब्‍लाग जगत में चार वर्ष

हिन्‍दी ब्‍लाग जगत में चार वर्ष

चार वर्ष पहले जब हिन्‍दी ब्‍लाग जगत में गिने चुने लोग ही थे , उस समय यहां मैं कैसे हो सकती थी। सचमुच आप सभी पाठकों को यह जानकर ताज्‍जुब होगा , पर यह बिल्‍कुल सत्‍य है कि हिन्‍दी ब्‍लाग जगत में मैने ब्‍लाग स्‍पाट पर अपनी पहली प्रोफाइल 2005 के अक्‍तूबर में बनायी थी और उसी वक्‍त अपना ब्‍लाग बनाकर अपनी पहली पोस्‍ट कृतिदेव10 फाण्‍ट में लिखकर ही 20 अक्‍तूबर 2005 को पोस्‍ट कर दिया था। फिर काफी दिनों तक मैं न तो यूनिकोड में लिखने के बारे में नहीं समझ सकी थी , और न ही चिट्ठा संकलकों के बारे में जानकारी थी , इसलिए पोस्‍ट करना बंद कर दिया था। 

यहां तक कि उस प्रोफाइल का पासवर्ड भी भूल गयी। दो वर्ष बाद ही सितम्‍बर 2007 में मैने वर्डप्रेस पर अपना ब्‍लाग बनाया था और नियमित तौर पर लिखने लगी थी । फिर एक वर्ष बाद अगस्‍त 2008 से मैने ब्‍लागस्‍पाट पर लिखना शुरू किया। ये रहा मेरे सबसे पुराने 20 अक्‍तूबर 2005 को पोस्‍ट किए गए पोस्‍ट का स्‍नैप शाट. , जो संयोग से मुझे ठीक 4 वर्ष बाद 21 अक्‍तूबर 2009 को गूगल सर्च के दौरान मिला ......

इस पोस्‍ट को रजनीश मांगला जी के फाण्‍‍ट कन्‍वर्टरके द्वारा यूनिकोड में बदलकर यहां पोस्‍ट कर रही हूं , आप भी एक नजर डालें , मैने अपनी पहली पोस्‍ट में क्‍या लिखा था ?

गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष : एक परिचय

भारत के बहुत सारे लोगों को शायद इस बात का ज्ञान भी न हो कि विगत कुछ वर्षों में उनके अपने देश में ज्योतिष की एक नई शाखा का विकास हुआ है, जिसके द्वारा वैज्ञानिक ढंग से की जानेवाली सटीक तिथियुक्त भविष्यवाणी जिज्ञासु बुfद्धजीवी वर्ग के मध्य चर्चा का विषय बनीं हुई है। इस 'गत्यात्मक ज्योतिष' के विकास की चर्चा के आरंभ में ही इसका प्रतिपादन करनेवाले वैज्ञानिक ज्योतिषी श्री विद्यासागर महथा का परिचय आवश्यक होगा ,जिनका वैज्ञानिक दृष्टिकोण ही गत्यात्मक ज्योतिष के जन्म का कारण बना।

 महथाजी का जन्म 15 जुलाई 1939 को झारखंड के बोकारो जिले में स्थित पेटरवार ग्राम में हुआ। एक प्रतिभावान विद्यार्थी कें रुप में मशहूर महथाजी रॉची कॉलेज ,रॉची में बी एससी करते हुए अपने एस्‍ट्रानामी पेपर के ग्रह नक्षत्रों में इतने रम गए कि ग्रह-नक्षत्रों की चाल और उनका पृथ्वी के जड़-चेतन पर पड़नेवाले प्रभाव को जानने की उत्सुकता ही उनके जीवन का अंतिम लक्ष्य बन गयी। उनके मन को न कोई नौकरी ही भाई और न ही कोई व्यवसाय। इन्‍होने प्रकृति की गोद में बसे अपने पैतृक गॉव में रहकर ही प्रकृति के रहस्यों को ही समझने का निश्‍चय किया।

ग्रह नक्षत्रों की ओर गई उनकी उत्सुकता ने उन्हें ज्योतिष शास्त्र के अध्ययन को प्रेरित किया। गणित विषय की कुशाग्रता और साहित्य पर मजबूत पकड़ के कारण तात्कालीन ज्योतिषीय पत्रिकाओं में इनके लेखों ने धूम मचायी। 1975 में उन्हीं लेखों के आधार पर `ज्योतिष-मार्तण्ड´ द्वारा अखिल भारतीय ज्योतिष लेख प्रतियोगिता में इन्हें प्रथम पुरस्कार प्रदान किया गया। उसके बाद तो ज्योतिष-वाचस्पति ,ज्योतिष-रतन,ज्योतिष-मनीषी जैसी उपाधियों से अलंकृत किए जाने का सिलसिला ही चल पड़ा।1997 में भी नाभा में आयोजित सम्मेलन में देश-विदेश के ज्योतिषियों के मध्य इन्हें स्वर्ण-पदक से अलंकृत किया गया।

विभिन्न ज्योतिषियों की भविष्‍यवाणी में एकरुपता के अभाव के कारणों को ढूंढते हुए इन्‍हें ज्‍योतिष की दो कमजोरियों का अहसास हुआ...

ज्‍योतिष की पहली कमजोरी ग्रहों की शक्तियानि ग्रह कमजोर हैं या मजबूत , को समझने की थी , क्‍यूंकि इसमें सूत्रों की अधिकता भ्रमोत्‍पादक थी।अपने अध्ययन में इन्‍हें ग्रहों की विभिन्‍न प्रकार की शक्तियों का ज्ञान हुआ जो इस प्रकार हैं .... अतिशीघ्री , 2.शीघ्री , 3. सामान्य , 4. मंद , 5.वक्र , 6.अतिवक्र।

इन्होनें पाया कि किसी व्यक्ति के जन्म के समय अतिशीघ्री या शीघ्री ग्रह अपने अपने भावों से संबंधित अनायास सफलता जातक को जीवन में प्रदान करते हैं। जन्म के समय के सामान्य और मंद ग्रह अपने-अपने भावों से संबंधित स्तर जातक को देते हैं। इसके विपरीत वक्री या अतिवक्री ग्रह अपने अपने भावों से संबंधित निराशाजनक वातावरण जातक को प्रदान करते हैं। 1981 में सूर्य और पृथ्वी से किसी ग्रह की कोणिक दूरी से उस ग्रह की गत्यात्मक शक्ति को प्रतिशत में निकाल पाने के सूत्र मिल जाने के बाद उन्होने परंपरागत ज्योतिष को एक कमजोरी से छुटकारा दिलाया।

फलित ज्योतिष की दूसरी कमजोरीदशाकाल-निर्धारण यानि घटना कब घटेगी , से संबंधित थी। दशाकाल-निर्धारण की पारंपरिक पद्धतियॉ त्रुटिपूर्ण थी। अपने अध्ययनक्रम में उन्होने पाया कि ज्योतिष के प्राचीन ग्रंथों में विर्णत ग्रहों की अवस्था के अनुसार ही मानव-जीवन पर उसका प्रभाव 12-12 वर्षों तक पड़ता है। जन्म से 12 वर्ष की उम्र तक चंद्रमा ,12 से 24 वर्ष की उम्र तक बुध ,24 से 36 वर्ष क उम्र तक मंगल ,36 से 48 वर्ष की उम्र तक शुक्र ,48 से 60 वर्ष की उम्र तक सूर्य ,60 से 72 वर्ष की उम्र तक बृहस्पति , 72 से 84 वर्ष की उम्र तक शनि,84 से 96 वर्ष की उम्र क यूरेनस ,96 से 108 वर्ष क उम्र तक नेपच्यून तथा 108 से 120 वर्ष की उम्र तक प्लूटो का प्रभाव मनुष्‍य पड़ता है। विभिन्न ग्रहों की एक खास अवधि में निश्चित भूमिका को देखते हुए ही `गत्यात्‍मक दशा पद्धति' की नींव रखी गयी। अपने दशाकाल में सभी ग्रह अपने गत्यात्मक और स्थैतिक शक्ति के अनुसार ही फल दिया करते हैं।

उपरोक्त दोनो वैज्ञानिक आधार प्राप्त हो जाने के बाद भविष्‍यवाणी करना काफी सरल होता चला गया। `गत्यात्मक दशा पद्धति´ में नए-नए अनुभव जुडत़े चले गए और शीघ्र ही ऐसा समय आया ,जब किसी व्यक्ति की मात्र जन्मतिथि और जन्मसमय की जानकारी से उसके पूरे जीवन के सुख-दुख और स्तर के उतार-चढ़ाव का लेखाचित्र खींच पाना संभव हो गया। धनात्मक और ऋणात्मक समय की जानकारी के लिए ग्रहों की सापेक्षिक शक्ति का आकलण सहयोगी सिद्ध हुआ। भविष्‍यवाणियॉ सटीक होती चली गयी और जातक में समाहित विभिन्न संदर्भों की उर्जा और उसके प्रतिफलन काल का अंदाजा लगाना संभव दिखाई पड़ने लगा।

गत्यात्मक दशा पद्धति के अनुसार जन्मकुंडली में किसी भाव में किसी ग्रह की उपस्थिति महत्वपूर्ण नहीं होती , महत्वपूर्ण होती है उसकी गत्यात्मक शक्ति , जिसकी जानकारी के बिना भविष्‍यवाणी करने में संदेह बना रहता है। गोचर फल की गणना में भी ग्रहो की गत्यात्मक और स्थैतिक शक्ति की जानकारी आवश्यक है। इस जानकारी पश्चात् तिथियुक्त भविश्यवाणियॉ काफी आत्मविश्वास के साथ कर पाने के लिए `गत्यात्मक गोचर प्रणाली´ का विकास किया गया ।

गत्यात्मक दशा पद्धति' एवं 'गत्यात्मक गोचर प्रणाली' के विकास के साथ ही ज्योतिष एक वस्तुपरक विज्ञान बन गया है , जिसके आधार पर सारे प्रश्नों के उत्तर 'हॉ' या 'नहीं' में दिए जा सकते हैं। गत्यात्मक ज्योतिश की जानकारी के पश्चात् समाज में फैली धार्मिक एवं ज्योतिषीय भ्रांतियॉ दूर की जा सकती है ,साथ ही लोगों को अपने ग्रहों और समय से ताल-मेल बिठाते हुए उचित निर्णय लेने में सहायता मिल सकती है। आनेवाले गत्यात्मक युग में निश्चय ही गत्यात्मक ज्योतिष ज्योतिष के महत्व को सिद्ध करने में कारगर होगा ,ऐसा मेरा विश्वास है और कामना भी। लेकिन सरकारी,अर्द्धसरकारी और गैरसरकारी संगठनों के ज्योतिष के प्रति उपेक्षित रवैये तथा उनसे प्राप्त हो सकनेवाली सहयोग की कमी के कारण इस लक्ष्य को प्राप्त करने में कुछ समय लगेगा , इसमें संदेह नहीं है।

संगीता पुरी

Specialist in Gatyatmak Jyotish, latest research in Astrology by Mr Vidya Sagar Mahtha, I write blogs on Astrology. My book published on Gatyatmak Jyotish in a lucid style. I was selected among 100 women achievers in 2016 by the Union Minister of Women and Child Development, Mrs. Menaka Gandhi. In addition, I also had the privilege of being invited by the Hon. President Mr. Pranab Mukherjee for lunch on 22nd January, 2016. I got honoured by the Chief Minister of Uttarakhand Mr. Ramesh Pokhariyal with 'Parikalpana Award' The governor of Jharkhand Mrs. Draupadi Murmu also honoured me with ‘Aparajita Award’ श्री विद्या सागर महथा जी के द्वारा ज्योतिष मे नवीनतम शोध 'गत्यात्मक ज्योतिष' की विशेषज्ञा, इंटरनेट में 15 वर्षों से ब्लॉग लेखन में सक्रिय, सटीक भविष्यवाणियों के लिए पहचान, 'गत्यात्मक ज्योतिष' को परिभाषित करती कई पुस्तकों की लेखिका, 2016 में महिला-बाल-विकास मंत्री श्रीमती मेनका गाँधी जी और महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुख़र्जी द्वारा #100womenachievers में शामिल हो चुकी हैं। उत्तराखंड के मुख्य मंत्री श्री रमेश पोखरियाल जी के द्वारा 'परिकल्पना-सम्मान' तथा झारखण्ड की गवर्नर श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी द्वारा 'अपराजिता सम्मान' से मुझे सम्मानित होने का गौरव प्राप्त हुआ। Ph. No. - 8292466723

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