भिन्न भिन्न वर्षों में भी किसी खास तिथि को जन्मलेने वालों की कुंडली में सूर्य की स्थिति बिल्कुल उसी स्थान पर होती है। इस एकमात्र सूर्य की स्थिति को ध्यान में रखते हुए ग्रंथों में जातक के फलाफल के बारे में बहुत कुछ लिखा मिलता है , जिसकी चर्चा ज्योतिषी बहुत दावे से किया करते हैं। इस आधार पर , चाहे वो ज्योतिषी हो या न्यूमरोलोजिस्ट और वे जिस भी विधा से भविष्यवाणी किया करते हों , यह पोस्ट उनकी विधा को विवादास्पद अवश्य बना रही है , जिसमें अलग अलग वर्षों में ही सही ,अरविंद मिश्रा जी के और मेरे एक ही दिन जन्म लेने की सूचना सारे ब्लॉग जगत को दी गयी है। पाठकों की जिज्ञासा स्वाभाविक है कि एक ही दिन विज्ञान और ज्योतिष जैसे विरोधाभासी विषय में जुनून से हद तक की दिलचस्पी रखने वाले यानि भिन्न भिन्न स्वभाव के दो लोग कैसे जन्म ले सकते हैं ?
मनुष्य मूलत: बहुत ही स्वार्थी होता है और किसी ऐसी व्यवस्था को पसंद नहीं करता , जिससे उसे अधिक समझौता करना पडे। इस कारण वह अपने जैसे स्वभाव के लोगों से मित्रता , संबंध और रिश्ते रखना चाहता है। कभी कभी वह इतना समर्थ होता है या उसके संयोग इतना काम करते हैं कि वह ऐसा करने में सफल हो जाता है , पर यदि शत प्रतिशत मामलों में यही प्रवृत्ति रहे , तो कुछ ही दिनों में विचारों के आधार पर ही तरह तरह के गुट बनेंगे , पारस्परिक मित्रता से लेकर , विवाह शादी तक अपने ही गुटों में होंगी और उसमें आनेवाली अगली पीढी भी उन्हीं विचारों को पसंद करेगी।
इस हालत में विचारों से विरोध रखनेवाले बिल्कुल गैर हो जाएंगे और अधिक शक्तिमान की मनमानी चलेगी। पर प्रकृति हमेशा एक औसत व्यवस्था में सबों को ले जाने की प्रवृत्ति रखती है , ताकि हर प्रकार के लोगों का एक दूसरों के विचारों से जोर शोर से टकराव हो और परिणामत: एक समन्वयवादी विचारधारा का जन्म हो, जिसके बल पर आगे का युग और प्रगतिशील बन सके। एक ही दिन में दो भिन्न विचारों वाले व्यक्ति का जन्म प्रकृति की ऐसी ही व्यवस्था में से एक हो सकती है।
यदि एक ज्योतिषी की हैसियत से इस प्रश्न का जबाब दिया जाए तो यह बात कही जा सकती है कि विभिन्न कुंडलियों में सूर्य अलग अलग भाव का स्वामी होता है , इस कारण अलग अलग लग्न के अनुसार जातक पर सूर्य के प्रभाव का संदर्भ बदल जाता है , इस कारण आवश्यक नहीं कि दोनो का सूर्य एक हो तो दोनो के अध्ययन का विषय भी एक ही हो। सूर्य किसी के अध्ययन को प्रभावित कर सकता है , तो किसी के पद प्रतिष्ठा के माहौल को और किसी के घर गृहस्थी को।
इसलिए इसके एक जैसे फल नहीं दिखाई पड सकते हैं। यदि ऐसा भी मान लिया जाए कि एक ही तिथि को जन्म लेनेवाले दो व्यक्ति एक ही लग्न के हों और सूर्य का प्रभाव दोनो के अध्ययन के विषय पर ही पडता हो , तो यह आवश्यक है कि दोनो में वैज्ञानिक दृष्टिकोण और ऐसी रूचियां रहेंगी। ऐसी स्थिति में एक के विज्ञान के विषयों और एक के ज्योतिष पढने की संभावना तभी बन सकती है , जब ज्योतिष को भी विज्ञान का ही एक विषय मान लिया जाए।
पर अभी ज्योतिष को विज्ञान मानने में बडी बडी बाधाएं हैं । और इस कारण पाठकों के मन में यह भ्रांति है कि ज्योतिष को पढनेवाले अंधविश्वासी ही हैं , तभी मन में ऐसे प्रश्न जन्म लेते हैं। भले ही ज्योतिष इस स्थिति में नहीं पहुंच सका है कि इसे पूर्ण विज्ञान मान लिया जाए , पर वैज्ञानिक रूचि रखनेवाले जातक भी इसमें हमेशा से रहे हैं। इसमें से अंधविश्वासों को ढूंढ ढूंढकर अलग करने और इसके वैज्ञानिक पक्ष को इकट्ठे करने का काम करते जाया जाए , तो ज्योतिष को विज्ञान में बदलते देर नहीं लगेगी।
पापा जी के 40 वर्षों के नियमित रिसर्च के बाद मैं भी इसी दिशा में प्रयासरत हूं और बहुत जल्द समाज के समक्ष ज्योतिष को विज्ञान के रूप में मान्यता दिलवाना मेरा लक्ष्य हैं। अरविंद मिश्रा जी ने नियंता के इस संकेत को स्वीकार कर लिया है कि विज्ञान और ज्योतिष का सहिष्णु साहचर्य रहे , आप सभी भी स्वीकार करेंगे , ऐसा मुझे विश्वास है।