google.com, pub-9449484514438189, DIRECT, f08c47fec0942fa0 आज के पूंजीपति

आज के पूंजीपति

अति प्राचीन काल में कंद मूल खाते , गुफाओं में रहते ,वृक्ष की छाल लपेटते हुए लोगों को धीरे धीरे समझ में आ गया था कि इस धरती पर प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता के सही उपयोग से उनके लिए भोजन की व्‍यवस्‍था बहुत कठिन नहीं है, बहुत कम लोग भी मेहनत कर कुल जनसंख्‍या के लिए इसका प्रबंध कर सकते हैं। 

ऐसी सोंच विकसित होने के बाद बाकी जनसंख्‍या को भोजन के अलावे मनुष्‍य की अन्‍य मुख्‍य जरूरतों जैसे वस्‍त्र ,आवास , वस्‍त्र , सुरक्षा जैसे जरूरी कार्यों में लगाकर एक पूरा समाज बनाया गया। क्रमश: सभ्‍य होते हुए मनुष्‍य की आवश्‍यकताएं बढती चली गयी और हर प्रकार के कार्य को संभालने के लिए उस क्षेत्र की विशेषज्ञता रखने वाले लोगों को जिम्‍मेदारी दी गयी। उन सभी प्रकार के काम में लगे लोगों के लिए भोजन की व्‍यवस्‍था करना खेतिहरों की जिम्‍मेदारी होती थी।

इसलिए भूस्‍वामी के घर में भले ही अनाज का ढेर दिखाई देता था , पर उसमें समाज के सभी वर्गों की हिस्‍सेदारी होती थी। यही कारण था कि मनुष्‍य की दूसरी आवश्‍यकताओं को पूरी करने वालों को अपने प्रतिदिन के भोजन या अन्‍य आवश्‍यकताओं के बारे में कुछ भी सोंचने की आवश्‍यकता नहीं होती थी। गृहस्‍थों को विभिन्‍न प्रकार के कर्मकांडों के बहाने से समाज के सभी वगों की जरूरत महसूस करवायी जाती थी और प्रत्‍येंक घर से उनके काम के बदले दिया जाने वाला अनाज वर्षभर यहां से वहां घूमता हुआ सभी वर्गों की आवश्‍यकताओं को पूरी करता था। 

उदार गृहस्‍थों , जिसमें भूमिपति, पूंजीपति और बलवान लोग शामिल थे , को अपना सारा अनाज गंवा देने का कोई भय नहीं था , क्‍यूंकि वे जानते थे कि अगले वर्ष अनाज फिर से उनके पास आ जाएगा, उन्‍हें प्रकृति पर विश्‍वास था। अपनी आवश्‍यकताओं के प्रति निश्चिंत होने से समाज के सभी वर्ग के लोग अपने काम में और निष्‍णात होते जा रहे थे , इसी कारण प्राचीन भारत में इतने प्रकार की कलाएं विकसित हुईं।

पर इस उदार पीढी के बाद क्रमश: नौकरों चाकरों की बढती हुई भीड के मध्‍य गृहस्‍थों की सुविधाभोगी अपने को 'तेज' कहने वाली पीढी ने कमान अपने हाथों में ली, जो अपने घर के सारे अनाज पर अपनी मिल्कियत समझने लगे। समाज के विभिन्‍न वर्गो को उनके कार्यों के लिए अनाज का इतना बडा हिस्‍सा देना उन्‍हें स्‍वीकार्य नहीं हुआ । उस अनाज में समाज के सभी वर्गों का हिस्‍सा मानने से उन्‍होने इंकार करना आरंभ किया । 

 इस पीढी ने कर्मकांडों में कटौती करना , मजदूरों से अधिक से अधिक काम करवाना, कलाकारों को उनकी कला के पूरी कीमत नहीं देना , अपने को ऊंचा और उन्‍हें नीचा समझना आरंभ किया । इनकी बचत करने की प्रवृत्ति जैसे जैसे बढती गयी , समाज के अन्‍य वर्गों का नुकसान होना शुरू हुआ। जहां एक ओर कई वर्षों का अनाज सड रहा था , वहीं दूसरी ओर गरीबों के बच्‍चों को भूखों मरने की नौबत आ गयी थी। शुरूआती दौर में घर में अनाज की मात्रा की कमी के कारण वे अपने घर के गहने जेवर और बरतन तक बेचने को मजबूर हुए। 

फिर जब घर में कुछ न बचा , तो धीरे धीरे न सिर्फ वे ही भूमिपति, पूंजीपति और बलवान गृहस्‍थों के शोषण के शिकार होते चले गए, वरन् उनके बच्‍चे भी उन्‍हीं के बनाए जाल में फंसते चले गए। अपनी आवश्‍यक आवश्‍यकताओं को पूरी न कर पाने के कारण उनके जीवन स्‍तर में तेज गति से गिरावट आयी। इस तरह समाज के कमजोर वर्ग और कमजोर होते चले गए और इसका प्रभाव उनके काम पर भी पडा। उनकी कला में पहले वाली खासियत नहीं रह गयी।

उसके बाद से आजतक तो लोगों की सुख सुविधा के लिए नए नए उपकरण भी इजाद होने लगी , जिससे लोगों का लालच और बढता चला गया और आज पूर्ण तौर पर सुविधा भोगी संस्‍कृति ने गरीब और अमीर वर्ग के मध्‍य बडा फासला बना दिया है। वास्‍तव में , चाहे कोई भी युग हो, कोई भी व्‍यापार हो , अपने 'लाभ' को प्राथमिकता देते हुए ही एक व्‍यापारी आगे बढता है , पर व्‍यवसाय का मुख्‍य लक्ष्‍य जनहित का होता है। 

आज के व्‍यापारियों की तरह स्‍वार्थ में अंधे होकर 'कोई भी' रास्‍ता उठाना एक व्‍यापारी के लिए उचित नहीं , इसलिए इससे परहेज करना चाहिए। अपने खर्चों में अधिक से अधिक कटौती कर सामान्‍य जनता के लिए सारी संभावनाओं को नष्‍ट कर देना एक सफल व्‍यवसायी का लक्ष्‍य नहीं होना चाहिए। अंधाधुंध पैसे कमाने के लिए आज प्रोफेशनल तक को इसी प्रकार की शिक्षा मिल रही है और बिना सोंचे समझे लगातार विकास का क्रम बनाए रखने के लिए कुछ भी किया जा रहा है , उसका फल आज भी कमजोर वर्ग की जनता को भुगतना पड रहा है। 

किसी कंपनी के पास क्‍या कहा जाए , एक व्‍यक्ति तक के पास करोडो अरबो रूपए और लाखों जनता को दो जून की रोटी में भी दिक्‍कत , आज का यह सच हो गया है। मुट्ठी भर लोगों के हाथ में सारे संसाधनों का आ जाना समाज के लिए बिल्‍कुल उचित नहीं , इसी का बुरा परिणाम कई सामाजिक समस्‍याओं के रूप में हमें देखने को मिल रहा है। आज के पूंजीपतियों को अपना दृष्टिकोण थोडी उदारता का बनाना होगा , तभी समाज के सभी वर्गों का कल्‍याण हो सकता है। देश के स्‍थायी आर्थिक विकास के लिए ये सबसे महत्‍वपूर्ण बात है , पर आज इसे सोंचनेवाला कोई भी नहीं। आज गरीबों का तो भगवान ही मालिक रह गया है !!



संगीता पुरी

Specialist in Gatyatmak Jyotish, latest research in Astrology by Mr Vidya Sagar Mahtha, I write blogs on Astrology. My book published on Gatyatmak Jyotish in a lucid style. I was selected among 100 women achievers in 2016 by the Union Minister of Women and Child Development, Mrs. Menaka Gandhi. In addition, I also had the privilege of being invited by the Hon. President Mr. Pranab Mukherjee for lunch on 22nd January, 2016. I got honoured by the Chief Minister of Uttarakhand Mr. Ramesh Pokhariyal with 'Parikalpana Award' The governor of Jharkhand Mrs. Draupadi Murmu also honoured me with ‘Aparajita Award’ श्री विद्या सागर महथा जी के द्वारा ज्योतिष मे नवीनतम शोध 'गत्यात्मक ज्योतिष' की विशेषज्ञा, इंटरनेट में 15 वर्षों से ब्लॉग लेखन में सक्रिय, सटीक भविष्यवाणियों के लिए पहचान, 'गत्यात्मक ज्योतिष' को परिभाषित करती कई पुस्तकों की लेखिका, 2016 में महिला-बाल-विकास मंत्री श्रीमती मेनका गाँधी जी और महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुख़र्जी द्वारा #100womenachievers में शामिल हो चुकी हैं। उत्तराखंड के मुख्य मंत्री श्री रमेश पोखरियाल जी के द्वारा 'परिकल्पना-सम्मान' तथा झारखण्ड की गवर्नर श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी द्वारा 'अपराजिता सम्मान' से मुझे सम्मानित होने का गौरव प्राप्त हुआ। Ph. No. - 8292466723

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