google.com, pub-9449484514438189, DIRECT, f08c47fec0942fa0 सर्वाधिक कष्‍टप्रद जीवन

सर्वाधिक कष्‍टप्रद जीवन

ज्‍योतिष जैसे विषय से जुडे होने के कारण अपने को दुखी कहनेवाले और सुखी होने के लिए सलाह के लिए आनेवाले लोगों की मेरे पास कमी नहीं , पर मेरे विचार से ये सारे लोग दुखी नहीं होते। उनके पास जीवन के सारे सुख हैं ,  ये बडी बडी गाडियों में आते हैं , अच्‍छा जीवन जीते हैं , पर संतोष की कमी है , इसलिए अपने को दुखी मानते हैं। हर प्रकार के सुख , डिग्री और पद के साथ जीने की इन्‍हें बुरी आदत हो गयी है और उसमें से कोई भी कमजोरी उन्‍हें तनाव दे देती है। 

सिर्फ अपने कर्म पर भरोसा रखने वालों को भी आध्‍यात्मिक विश्‍वास वालों की तुलना में मैने अधिक दुखी पाया है , क्‍यूंकि हर वक्‍त कर्म से आप अपने जीवन को नहीं सुधार सकते , इस लंबे जीवन में बहुत कुछ अपने हाथ में नहीं होता , पर आध्‍यात्म पर विश्‍वास रखनेवालों को हर परिस्थिति को स्‍वीकारने और संतोष कर लेने की एक अच्‍छी आदत होती है। मैं तो बस यही मानती हूं कि अपने लक्ष्‍य के लिए जी जान से कोशिश करो , फिर भी वो नहीं मिले , तो उस वक्‍त समझौता कर लो और यह विश्‍वास रखो कि उससे बडी उपलब्धि आगे मिलनेवाली है।

कहा जाता है कि सबों का जीवन सुख और दुख का मिश्रण है। पर कभी कभी यह विचित्रता अवश्‍य देखने को मिलती है कि किसी के हिस्‍से में सिर्फ सुख ही सुख होता है और किसी के हिस्‍से में केवल कष्‍ट। यदि विज्ञान के कार्य कारण नियम के अनुसार इसका कारण ढूंढा जाए तो हमारे हिस्‍से कुछ भी नहीं लगेगा , पर आध्‍यात्‍म के अनुसार हमारा जीवन कई कई जन्‍मों के हमारे कर्म का फल है , भले ही इसका प्रमाण न हो , पर कार्य कारण नियम के अनुसार हमें मिलनेवाले हर सुख दुख का हिसाब तो इससे मिल ही जाता है। इतना ही नहीं , आध्‍यात्‍म पर विश्‍वास हमारे कर्म को नियंत्रित भी करता है और हमारे अंदर सद्गुणों का विकास कर हमें चरित्रवान भी बनाता है। आध्‍यात्‍म के इस विशंषता के आगे तर्क कहीं भी नहीं टिकता ।

अपने अभी तक के अनुभव में मैने अपने गांव की एक महिला को सबसे कष्‍टकर जीवन जीते पाया है , पर मैं ऐसा नहीं मान सकती कि उससे दुखी दुनिया में और कोई भी नहीं। पूरी दुनिया में न जाने कितनी महिलाएं और पुरूष किन किन जगहों पर घोर यातना का शिकार बने हुए हों,  पर मेरी नजर में आयी तीन चार दुखियारी महिला के मध्‍य यह सबसे दुखियारी मानी जा सकती है। सामान्‍य तौर पर संपन्‍न घर में जन्‍म लेनेवाली इस महिला , जिसकी चर्चा कर रही हूं , का विवाह भी एक संपन्‍न घराने के सरकारी नौकरी कर रहे इकलौते युवक से हुआ। दो बेटियां और एक बेटे ने भी जन्‍म लेकर उनके परिवार को सुखी बनाने में कोई कसर नहीं रहने दिया, यहां तक कि दो चार वर्षों तक उनका पालन पोषण और विकास भी अच्‍छे ढंग से हुआ , पर आगे की कहानी पढकर बात समझ में आएगी कि उनके लिए यह खुशी बिल्‍कुल क्षणिक थी।

पीढियों से उनके परिवार के सारे नहीं , पर कुछ बच्‍चे एक खास प्रकार की बीमारी से ग्रस्‍त देखे जाते थे। इस बीमारी में तीन चार वर्ष की उम्र में पोलियो की तरह पहले शरीर का कोई एक अंग काम करना बंद कर देता है ,खासकर पैर , फिर धीरे धीरे पूरा शरीर ही इसके चपेट में आ जाता है। हालांकि इस दौरान भी शारिरीक विकास में कोई कमी नहीं देखी जाती है और 20 वर्ष की उम्र तक बच्‍चे बिस्‍तर में पडे पडे युवा भी हो जाते हैं, पर युवावस्‍था ही इनका अंतिम समय होता है , 20 से 22 वर्ष की उम्र के आसपास इनकी मौत हो जाती है। 

पर इस दौरान मानसिक विकास तो बाधित होता ही है , बोलने और समझने की शक्ति भी समाप्‍त हो जाती है।  किसी भी डॉक्‍टर ने इसका कोई पुखता इलाज होने की बात नहीं कही। इस परिवार के अलावा हमारे पूरे गांव में इस प्रकार की बीमारी किसी भी परिवार में आजतक नहीं हुई , इसलिए इसे लोग जेनेटिक ही मानते हैं। हालांकि उनके परिवार में भी ये बीमारी बिल्‍कुल छिटपुट ढंग से कभी कभार ही किसी को हुई है, बाकी बच्‍चे बिल्‍कुल स्‍वस्‍थ हैं। यहां तक कि उनके परिवार की बेटियों को भी ऐसे बच्‍चे नहीं होते हैं।

पर उक्‍त महिला के दुर्भाग्‍य को हमने काफी निकट से देखा है, एक एक कर उसके तीनों बच्‍चे इस गंभीर बीमारी के शिकार हो गए। नौकरी करनेवाले अपने पति को शहर में छोडकर बच्‍चों की तीमारदारी के लिए उन्‍हें गांव में रहना पडा। जहां बच्‍चों को एक दो वर्ष संभालना ही हमें इतना भारी काम महसूस होता है , उसने निराशाजनक परिस्थितियों में 20 वर्ष की उम्र तक तीन तीन बच्‍चों को कैसे संभाला होगा , यह सोंचने वाली बात है। खैर बिस्‍तर पर पडे अपने बच्‍चों की इतने दिनों तक सेवा सुश्रुसा करने के बाद एक एक कर तीनों चल बसे , उनसे निश्चिंत हुई ही होगी कि पति की बीमारी ने फिर उसका जीना मुश्किल किया। 

तीन चार वर्षों तक गंभीर इलाज और कई प्रकार के ऑपरेशन के बाद उसके पति भी चल बसे। आज अपने जीवन के अंतिम दिनों में वो बिल्‍कुल अकेली है , उसके जीवन की खुशियों को जबरदस्‍ती ढूंढा जाए तो इतना अवश्‍य मिलेगा कि वो रोजी रोटी के लिए दर दर की ठोकरें खाने को मुहंताज नहीं है। उसके घर में अनाज है और हाथ में पेशन के रूपए भी , पर जीवन में उसने जो झेला और आज जो तनाव भरा जीवन काट रही है, उसे सोंचकर भी मेरे रोंगटे खडे हो जाते हैं !!


संगीता पुरी

Specialist in Gatyatmak Jyotish, latest research in Astrology by Mr Vidya Sagar Mahtha, I write blogs on Astrology. My book published on Gatyatmak Jyotish in a lucid style. I was selected among 100 women achievers in 2016 by the Union Minister of Women and Child Development, Mrs. Menaka Gandhi. In addition, I also had the privilege of being invited by the Hon. President Mr. Pranab Mukherjee for lunch on 22nd January, 2016. I got honoured by the Chief Minister of Uttarakhand Mr. Ramesh Pokhariyal with 'Parikalpana Award' The governor of Jharkhand Mrs. Draupadi Murmu also honoured me with ‘Aparajita Award’ श्री विद्या सागर महथा जी के द्वारा ज्योतिष मे नवीनतम शोध 'गत्यात्मक ज्योतिष' की विशेषज्ञा, इंटरनेट में 15 वर्षों से ब्लॉग लेखन में सक्रिय, सटीक भविष्यवाणियों के लिए पहचान, 'गत्यात्मक ज्योतिष' को परिभाषित करती कई पुस्तकों की लेखिका, 2016 में महिला-बाल-विकास मंत्री श्रीमती मेनका गाँधी जी और महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुख़र्जी द्वारा #100womenachievers में शामिल हो चुकी हैं। उत्तराखंड के मुख्य मंत्री श्री रमेश पोखरियाल जी के द्वारा 'परिकल्पना-सम्मान' तथा झारखण्ड की गवर्नर श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी द्वारा 'अपराजिता सम्मान' से मुझे सम्मानित होने का गौरव प्राप्त हुआ। Ph. No. - 8292466723

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