सबसे पहले तो बात करें आज कि जिसमें खुशदीप सहगल जी भी शंकर जी के मंदिर में आते नाग की पिक्चर दिखाकर पूछ रहे हैं ... आपने फोटो देख लिए...
अब मेरे आप सबसे से चंद सवाल... क्या ये वाकई चमत्कार है... क्या ये फोटो वास्तविक हैं...यानि इनसे कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है... जब कोबरा पिछली बार फोटोग्राफर के वहां रहने पर प्रकट नहीं हुआ तो इस बार भी फोटोग्राफर के वहां पहुचने पर चला क्यों नहीं गया... तमिलनाडु में कहीं ये खबर अंधविश्वास की अति की प्रवृत्ति के चलते अखबार ने अपना सर्कुलेशन बढ़ाने की गरज से तो नहीं छापी... बहरहाल, जो भी है, मुझे ई-मेल से ये फोटो-फीचर मिला तो आप के साथ बांटने की इच्छा हुई...अब आप विश्वास रखते हों या इसे अंधविश्वास मानते हो, आप अपने मत के लिए स्वतंत्र हैं...मेरा अनुरोध बस यही है कि इस पोस्ट को बस दिलचस्प ख़बर की तरह लीजिएगा..
कुछ दिन पूर्व मैने भी एक पोस्ट लिखा था कि समाज से अंधविश्वास हटा पाना बहुत ही कठिन है ....
मैं दस बारह वर्ष पूर्व की एक सच्ची और महत्वपूर्ण घटना का उल्लेख करने जा रही हूं। बोकारो रांची मुख्य सडक के लगभग मध्य में एक छोटा सा गांव है , जिसमें एक गरीब परिवार रहा करता था। उस परिवार में दो बेटे थे , बडे बेटे ने गांव के रोगियों के उपचार में प्रयोग आनेवाली कुछ जडी बूटियों की दुकान खोल ली थी। बचपन से ही छोटे बेटे के आंखों के दोनो पलक सटे होने के कारण वह दुनिया नहीं देख पा रहा था। गरीबी की वजह से इनलोगों ने उसे डाक्टर को भी नहीं दिखाया था और उसे अंधा ही मान लिया था। पर वह अंधा नहीं था , इसका प्रमाण उन्हें तब मिला , जब 16-17 वर्ष की उम्र में किशोरावस्था में शरीर में अचानक होनेवाले परिवर्तन से उसकी दोनो पलकें हट गयी और आंखे खुल जाने से एक दिन में ही वह कुछ कुछ देख पाने में समर्थ हुआ।
उसके शरीर में अचानक हुए इस परिवर्तन को देखकर परिवार वालों ने इसका फायदा उठाने के लिए रात में एक तरकीब सोंचा। खासकर बडे बेटे ने अपनी जडीबूटियों की दुकान को जमकर चलाने के लिए यह नाटक किया। सुबह होते ही छोटा बेटा पूर्ववत् ही लाठी लिए टटोलते टटोलते गांव के पोखर में पहुंचा और थोडी देर बाद ही हल्ला मचाया कि उसकी आंखे वापस आ गयी है । पूरे गांव की भीड वहां जमा हो गया और पाया कि वह वास्तव में सबकुछ देख पा रहा है। जब लोगों ने इसका कारण पूछा तो उसने बताया कि अभी अभी एक बाबा उधर से गुजर रहे थे , उन्होने ही उसपर कृपा की है । उन्होने कहा है कि न सिर्फ तुम्हारी आंख ठीक हो जाएगी, तुम अब जिनलोगों को आशीर्वाद दे दोगे , वे भी ठीक हो जाएंगे।
इमरान हैदर जी इस पोस्ट में बताते हैं कि बडे बडे लोग भी अपने को बचाने के लिए अंधविश्वास की चक्कर में आ जाते हैं भ्रष्ट्राचार के कई मामलों से घिरे जरदारी एक बार फिर अंधविश्वास के चलते मुसीबत में घिरते नज़र आ रहे हैं। राष्ट्रपति बनने के बाद से जरदारी ने खुद को बुरी नज़र से बचाने के लिए 500 से भी ज्यादा काले बकरों की बलि दे दी है। जरदारी रोज़ सुबह एक काले बकरे की बलि देते है ताकि वे किसी भी तरह की बुरी नज़र और जादू से बच सके। इतना ही नहीं इस अंधविश्वास के चलते जरदारी सिर्फ ऊंट और बकरी का ही दूध पीते हैं। ऐसा नहीं है कि इस अंधविश्वास की चपेट में सिर्फ जरदारी ही शामिल हों पूरी दुनिया में ऐसे कई राजनेता और विश्व प्रसिद्ध हस्तियां हैं जिन्होंने खुद को इस तरह के तमाम अंधविश्वासों में खुद को लपेट रखा है। इन हस्तियों के बारे में जानने से पहले एक नज़र ड़ालते हैं कौन से ऐसे टोटके हैं जिन्होंने पूरी दुनिया को दहशत की चपेट में ड़ाल रखा है।
बिल्ली के रोने की आवाज- परेशानी आने की सूचना मिलना।
-काम पर जाते समय छींकना- काम न बनना।
- पूजा करते समय दीपक बुझना- अपशगुन होना।
- खाने में बाल आना- किसी परेशानी में आना।
- रोटी का बार-बार मुड़ना- किसी अपने का याद करना।
- छत पर कौवे का बोलना- मेहमान के आने की सूचना।
और भी ना कितने तरह के टोटके हैं जिनसे लोग डरते हैं। पूरी दुनिया में एक नज़र डाले तो तमाम बड़े नाम किसी ना किसी शकुन और अपशकुन के चलते अंध विश्वास की चपेट में रहे हैं।
दृष्टिकोण ने भी लिखा है कि आजकल टी.वी पर एक धारावाहिक के ज़रिए देश के एक सदियों पुराने अंधविश्वास को भुनाकर पैसा कमाने की जुगत चल रही है। पूर्वजन्म की यादों को वापस लाने के निहायत अवैज्ञानिक, झूठे और आडंबरपूर्ण प्रदर्शन के ज़रिए लोगों में इस बचकाने अंधविश्वास को और गहरे तक पैठाने की कोशिश की जा रही है। यह कहना तो बेहद मूर्खतापूर्ण होगा कि आम जनता में गहराई तक मार करने वाले एक महत्वपूर्ण मीडिया पर ऐसे अवैज्ञानिक कार्यक्रमों को प्रसारित करने की अनुमति आखिर कैसे दे दी जाती है ! यह मामला नियम-कानून, और सांस्कृतिक-सामाजिक नीतियाँ बनाने वालों की मूढ़ता का भी नहीं है। दरअसल यह तो एक सोचे-समझे ब्रेनड्रेन कार्यक्रम का हिस्सा है, जिसमें षड़यंत्रपूर्वक आम जन साधारण में वैचारिक अंधता पैदा करने, समझदारी और तर्कशक्ति को कुंद कर देने की जनविरोधी कार्यवाही अंजाम दी जाती है, ताकि लोगों का ध्यान देश की मूल समस्याओं की ओर से हटाया जा सके।
लेकिन.... इट हैपेन्स ओनली इन इंडिया। कुछ समय पहले एक रिअलिटी शोआरंभ हुआ है 'राज़..पिछले जन्म का' एनडी टी वी इमेजिन पर जहाँप्रतिभागी बड़े नाटकीय तरीके से अपने पूर्व जन्म में चले जाते हैं (यह समययात्रा से भीआगे की चीज़ है भाई) और उन्हें सब कुछ याद आ जाता है, किउनकी मृत्यु कैसे हुई, पिछले जन्म में कौन माँ बाप थे, आदि आदि। प्रेमाईसये है कि यदि आपको कोई चीज़ बेचैन करती है, किसी प्रकार का भय है, याऐसा ही कुछ तो ज़रूरइसका रिश्ता पूर्व जन्म से है। तो अब आप पूर्व जन्म मेंजाइये, अपनी वर्तमान समस्या का निश्चित कारण 'देखिये'। और वापसआइये आपकी उद्विग्नता समाप्त या कम हो जाएगी। तो जैसे ही सेलिनाजेटली कहती हैं कि उन्हें 'सोल मेट' कि तलाश है, दर्शक समझ जाता है किज़रूर पूर्व जन्म में इनका कोई ब्रेक अप हुआ था। वाह वाह।जबकि उसके ही एक नियम 'Cable Television Network Rules, 1994 (Rule 6-1-j) के तहत अंधविश्वास फैलाना जुर्म है।
डॉ श्याम गुप्ता जी भी परेशान है कि समाचार पत्र अंधविश्वासों को हवा दे रहे हैं ...
समाचार पत्र व उनके सम्पादक गण जरा सोचें कि उनके पत्र में छपे ये विज्ञापन किस हद तक समाज़ में व्याप्त अन्धविश्वासों जो बढावा देते हैं? जब तक हम, सारा जनसमुदाय, एवं उसके साथ समाज का प्रहरी, जन् तन्त्र का चौथा खम्बा, अपनी व्यवसायी मानसिकता छोडकर,इसे विज्ञापनों, आलेखों (चाहे वे कितने ही आकर्षक व सम्मानित लेखकों के हों), को छापने से इन्कार करने का साहस नहीं जुटायेंगे ये मुहिम तेज व धार दार नहीं हो पायेगी।
प्रज्ञा प्रसाद जी कहती हैं कि अंधविश्वास में घिरे मा बाप पर बच्चों के कष्ट का भी कोई प्रभाव नहीं पडता है , पढिए ...
आपने भी देखा होगा चैनलों पर कि किस तरह कर्नाटक के गुलबर्गा में मासूमों पर जुल्म ढाया जा रहा था... और ये कोई नई बात नहीं है... पिछले साल भी जुलाई में बच्चों को गले तक ज़मीन में गाड़ दिया गया था... उस वक्त भी बहस हुई थी... लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला... इस बार भी बच्चों को गले तक ज़मीन में दबा दिया गया... इन बच्चों में विकलांग बच्चे भी शामिल थे... अंदाज़ा लगाइए कि किस तरह करी साढ़े ३ घंटे इन बच्चों ने रोते-बिलखते, भूखे-प्यासे गुज़ारे होंगे... लोग दोष दे रहे हैं व्यवस्थआ को, प्रशासन को... लेकिन मैं तो कहती हूं कि इसमें सबसे बड़ा दोष करीब ९९ प्रतिशत दोष माता-पिता का है।
अभिषेक प्रसाद जी भी बात लोगों
के
विश्वास
की – अंधविश्वास की देखकर आश्चर्य करते हैं ...
अब हुआ यूँ कि मेरी तबियत खराब हुई तो माँ ने अपने इलाज भी शुरू कर दिए. पहुँच गयी एक jewelry shop और बनवा लायी मेरे लिए सोने का हनुमान (अब उसका मूल्य नहीं बताऊंगा, भाई किसी ने अगवा कर लिया मुझे तो?). हाँ तो जैसा कि माँ ने मुझे बताया कि इस लोकेट को पहनने से मेरी सारी तकलीफें दूर हो जाएँगी. हुआ भी कुछ ऐसा ही 3 दिनों के बाद ही मैं क्रिकेट खेलने लायक हो गया. अब देखिये 7 दिनों से doctor uncle की दवा खा रहा था पर ठीक हुआ हनुमान जी की कृपा से. धन्य हो प्रभु, धन्य हो.
अब ये चमत्कार हुआ तो, पर मैं विश्वास ही नहीं कर पा रहा. कर भी नहीं सकता. जब भगवान नाम की किसी चीज़ पर विश्वास नहीं तो इन सब बातों पर विश्वास का सवाल ही उत्तपन नहीं होता ।
हमारे गांव में एक मकान को भूतहा माना जाता था , जो भी किराएदार वहां रहते , असामान्य घटनाओं की चर्चा करते रहते थे। अंत में वह मकान एक पुलिस अफसर को मिला , उन्होने कभी भी ऐसी बातें न की , तो गांव के शिक्षितों को महसूस हुआ कि भूत प्रेत वाली बातें बेमानी है , हालांकि बहुत गांववाले यही मानते रहें कि भूत उन्हें भी परेशान करता होगा , पर वे अपनी प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए इस बात का खुलासा नहीं कर रहे हैं , पर इस समाचार में देखिए पुलिस भी अंधविश्वास में पडी है।
और लोगों की बातें क्या की जाए , जब धर्म और मानवता की रक्षा करने वाले एक पुजारी ने तो काली जी के मंदिर में अपना सर ही काट डाला दो वर्ष पूर्व काली माता को चढ़ाई थी जीभ... जबलपुर,। अंधविश्वास के कारण व्यक्ति अपने अनमोल जीवन के साथ खिलवाड़ करते हैं। ऐसी ही एक घटना आज सुबह समीपवर्ती कटनी जिले के ग्राम स्लीमनाबाद में घटित हुई जहां काली माता के एक उपासक ने मंदिर के अंदर अपना सिर काट लिया। पुजारी को गंभीर अवस्था में उपचार के लिए जबलपुर स्थित शासकीय मेडिकल कॉलेज अस्पताल लाया गया है। पुजारी ने लगभग दो वर्ष मां काली को जीभ काटकर समर्पित की थी। कटनी के पुलिस अधीक्षक मनोज शर्मा से प्राप्त जानकारी के अनुसार स्लीमनाबाद निवासी जय कुमार जायसवाल मां काली के उपासक हैं। लगभग दो वर्ष पूर्व उन्होंने अपनी जीभ काटकर मां काली को समर्पित कर दी थी। आज सुबह लगभग 5 बजे जयकुमार ग्राम स्थित मां काली के मंदिर पहुंचे। पूजा अर्चना के बाद उन्होंने तलवार से अपनी गर्दन काट ली।
वैज्ञानिक युग में भी लोग अंधविश्वास में किस तरह जकड़े हुए हैं, इसका उदाहरण यहां देखने को मिला। शहर के प्राचीन मंदिर महेश्वरी देवी में एक युवक ने ब्लेड से अपनी जीभ काटकर चढ़ा दी। पुलिस ने युवक को गंभीर हालत में जिला अस्पताल में भर्ती कराया है।सोमवार दोपहर लगभग 3 बजे कमासिन थानाक्षेत्र के ग्राम लाखीपुर पोस्ट बंथरी निवासी मुकेश कुमार पुत्र रामगुलाम महेश्वरी देवी मंदिर पहुंचा। वहां मौजूद लोग जब तक कुछ समझ पाते उक्त युवक ने जेब से ब्लेड निकाला और जीभ का अगला हिस्सा काटकर मूर्ति की तरफ उछाल दिया। युवक के मुंह से खून का फौव्वारा छूट पड़ा जिससे लोग अवाक रह गये। वहां मौजूद पुजारी दिनेश कुमार ने तुरंत पुलिस को सूचना दी। मौके पर पहुंची पुलिस ने खून से लथपथ युवक को जिला अस्पताल में भर्ती कराया, अगली कडी में और बातें भी जानने को मिलेंगी कल इसी वक्त।