जब भी हमें किसी ऐसे वस्तु की आवश्यकता होती है , जिसे हम खुद नहीं प्राप्त कर सकते , तो इसके लिए समर्थ व्यक्ति से निवेदन करते हैं। निवेदन किए जाते वक्त हमें अपने मन का अहंकार समाप्त करना पडता है । यदि हम ऐसा न करें और अपने अहंकार में बने रहें तो हमारा निवेदन स्वीकार्य नहीं हो सकता। इस समय हम अपनी कमजोरी को स्वीकार करने के साथ ही साथ सामने वाले की महत्ता को भी स्वीकार करते हैं , मन की यही निर्मलता हमें कुछ प्राप्त करने के लायक बनाती है। इतने बडे जीवन में हर कोई किसी न किसी स्थान पर एक दूसरे से महान होता है और एक दूसरे की मदद करते हुए दुनिया को आगे बढाने में समर्थ होता है। विनम्रता का अभाव और अहंकार की कमी होने से हम आगे बढने में कामयाब नहीं हो सकते हैं।
कभी कभी हमारे सामने ऐसी समस्याएं आ जाती है , जिसे हम न तो खुद और न ही दूसरों से हल करवा पाते हैं , उस समय एक सर्वशक्तिमान की याद अवश्य आ जाती है , जिसके सामने हम प्रार्थना करने लगते हैं। इस सर्वशक्तिमान का स्वरूप भिन्न भिन्न दृष्टिकोण वालों का भिन्न भिन्न होता है। ऐसा माना जाता है कि प्रार्थना में अद्भुत शक्ति होती है और इसके जरिए हम प्रभु या प्रकृति से संबंध बना लेते हैं। जहां धार्मिक और आध्यात्मिक रूचि रखने वाले व्यक्ति प्रतिदिन प्रार्थना करते हैं , वहीं सांसारिक या व्यस्त रहने वाले व्यक्ति विपत्ति के उपस्थित होने पर अवश्य ईश्वर की प्रार्थना किया करते हैं। अधिकांश जगहों पर विपत्ति आते ही नास्तिकों को भी ईश्वर याद आ जाते हैं। प्रत्येक व्यक्ति के समक्ष ईश्वर का अलग अलग रूप होता है , पर प्रार्थना के सफल होने के लिए ईश्वर के प्रति समर्पित होने के साथ साथ अपने अहंकार का त्याग और मन की निश्छलता की आवश्यकता होती है।
भले ही पूजा करने के वक्त हमारा स्नान करना , साफ सुथरा वस्त्र पहनना आवश्यक है , प्रार्थना करते वक्त ऐसा नहीं होता , इस समय मन का निर्मल रहना ही अधिक आवश्यक है। जीवन में हमारे समक्ष जो भी परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं , वे प्रकृति के द्वारा निश्चित होती हैं। पर हम उन परिस्थितियों से लडते हुए अपने कर्म के द्वारा जीवन में आगे बढते जाते हैं। कभी कभी अचानक उपस्थित कोई विपत्ति हमें बहुत भारी लगने लगती है और उस विपत्ति को तुरंत दूर करने के लिए हम प्रार्थना करते हैं। कभी कभी हमारी प्रार्थना से समय से पहले विपत्ति दूर हो जाती है , तो उसके बदले हमें अपना कोई सुख भी छोडना पड सकता है, क्यूंकि प्रकृति में हमेशा किसी लेने के बदले देने का नियम होता है। भले ही इसे सामान्य ढंग से समझ पाना कठिन हो। इसलिए हमें उस विपत्ति को सहने की शक्ति को बढाने के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। इसके अलावे अधिकांश समय लोग सांसारिक सुख के लिए ही प्रार्थना करते हैं,यह भी बिल्कुल गलत है।
निर्मल मन से अहंकार को त्याग देने के बाद की गयी प्रार्थना से हमारे मन की मुराद अवश्य पूरी होती है , पर कभी कभी इसमें बडी गडबडी आती है। बाबर और हूमायूं की कहानी आपने सुनी होगी। हुमायूं जब मृत्युशय्या पर पड़ा था, बाबर ने उसकी तीन बार परिक्रमा की और अल्लाह से प्रार्थना की के वह हुमायूं की ज़िन्दगी बख्स दे चाहे बदले में उसकी ज़िन्दगी ले ले। फिर ऐसा ही हुआ, हुमायूं तो ठीक हो गया लेकिन बाबर शीघ्र ही बीमार हो कर चल बसा। इसलिए किसी मनोकामना के पूरी होने के लिए प्रार्थना करते वक्त कभी भी उसके बदले में कुछ ले लेने की बात मुंह से न निकाले। यह समझते हुए कि अभी आयी समस्या के अतिरिक्त अन्य बातों का कोई महत्व नहीं , लोग अक्सर भावावेश में कह बैठते हैं ' मेरा यह काम कर दो , चाहे बदले में कुछ भी ले लो' ऐसे में कभी कभी उस सफलता की बडी कीमत चुकानी पडती है। इसलिए प्रार्थना करते वक्त सांसारिक सुख और सफलता न मांगते हुए मानसिक सुख और शांति की इच्छा रखनी चाहिए।