google.com, pub-9449484514438189, DIRECT, f08c47fec0942fa0 आज थोडी जानकारी बच्‍चों की पढाई के बारे में भी .......

आज थोडी जानकारी बच्‍चों की पढाई के बारे में भी .......

अभी तक आपने पढा .... खासकर बच्‍चों के पढाई के लिए ही तो हमलोग अपना नया जीवन बोकारो में शुरू करने आए थे , इसलिए बच्‍चों के पढाई के बारे में चर्चा करना सबसे आवश्‍यक था , जिसमें ही देर हो गयी। बचपन से जिन बच्‍चों की कॉपी में कभी गल्‍ती से एक दो भूल रह जाती हो , स्‍कूल के पहले ही दिन उन बच्‍चों की कॉपी के पहले ही पन्‍ने पर चार छह गल्तियां देखकर हमें तो झटका ही लग गया था , वो भी जब उन्‍हें मात्र स्‍वर और व्‍यंजन के सारे वर्ण लिखने को दिया गया हो। पर जब ध्‍यान से कॉपी देखने को मिला , तो राहत मिली कि यहां पे मैं भी होती तो हमारी भी चार छह गलतियां अवश्‍य निकलती। हमने तो सरकारी विद्यालय में पढाई की थी और हमें ये तो कभी नहीं बताया गया था कि वर्णों को वैसे लिखते हैं , जैसा टाइपिंग मशीनें टाइप करती हैं। और जैसा हमने सीखा था , वैसा ही बच्‍चों को सिखाया था और उनके पुराने स्‍कूल में भी इसमें काट छांट नहीं की गयी थी। इसका ही फल ही था कि पहली और तीसरी कक्षा के इन बच्‍चों के द्वारा लिखे स्‍वर और व्‍यंजन वर्ण में भी इतनी गल्तियां निकल गयी थी। पर बहुत जल्‍द स्‍कूल के नए वातावरण में दोनो प्रतिदिन कुछ न कुछ सीखते चले गए और पहले ही वर्ष दोनो कक्षा में स्‍थान बनाने में कामयाब रहे। खासकर छोटे ने तो  पांच विषयों में मात्र एक नंबर खोकर 99.8 प्रतिशत नंबर प्राप्‍त कर न सिर्फ अपनी कक्षा में , वरन् पूरी कक्षा में यानि सभी सेक्‍शन में टॉप किया था।

धीरे धीरे नए नए बच्‍चों से दोस्‍ती और उनके मध्‍य स्‍वस्‍थ प्रतिस्‍पर्धा के जन्‍म लेने से  बच्‍चे अपने विद्यालय के वातावरण में आराम से एडजस्‍ट करने लगे थे। विद्यालय में पढाई की व्‍यवस्‍था तो बहुत अच्‍छी थी , अच्‍छी पढाई के लिए उन्‍हें प्रोत्‍साहित भी बहुत किया जाता था। हर सप्‍ताह पढाए गए पाठ के अंदर से किसी एक विषय का टेस्‍ट सोमवार को होता , इसके अलावे अर्द्धवार्षिक और वार्षिक परीक्षाएं होती , तीनों को मिलाकर रिजल्‍ट तैयार किए जाते। पांचवी कक्षा से ही कुल प्राप्‍तांक को देखकर नहीं , हर विषय में विद्यार्थियों को मजबूत बनाने के लिए प्रत्‍येक विषय में 80 प्रतिशत नंबर लानेवाले को स्‍कोलर माना जाता और उन्‍हें स्‍कोलर बैज दिए जाते। तीन वर्षों तक नियमित तौर पर स्‍कोलर बैज लानेवाले बच्‍चों को स्‍कूल से ही नीले कलर की स्‍कोलर ब्‍लेजर के साथ स्‍कोलर बैज मिलती और छह वर्षों तक नियमित तौर पर स्‍कोलर बैज पाने वाले बच्‍चों को फिर से एक नीले स्‍कोलर ब्‍लेजर और नीली स्‍कोलर टाई के साथ स्‍कोलर बैज , इसके लिए बच्‍चे पूरी लगन से प्रत्‍येक वर्ष मेहनत करते।

डी पी एस , बोकारो के स्‍कूल की पढाई ही बच्‍चें के लिए पर्याप्‍त थी , उन्‍हें मेरी कभी भी जरूरत नहीं पडी , मैं सिर्फ उनके रिविजन के लिए प्रतिदिन कुछ प्रश्‍न दे दिया करती थी। कभी कभी किसी विषय में समस्‍या होने पर कॉपी लेकर मेरे पास आते भी , तो मेरे द्वारा हल किए जानेवाले पहले ही स्‍टेप के बाद उन्‍हें सबकुछ समझ में आ जाता। तुरंत वे कॉपी छीनकर भागते , तो मुझे खीझ भी हो जाती , अरे पूरा देख तो लो । स्‍कूल में स्‍कोलर बैज , ब्‍लेजर तो प्रत्‍येक विषय में 80 प्रतिशत मार्क्‍स में ही मिल जाते थे , पर ईश्‍वर की कृपा है कि दोनो बच्‍चों को कभी भी किसी विषय में 90 प्रतिशत से नीचे जाने का मौका नहीं मिला , इसलिए स्‍कोलर बैज कभी भी अनिश्चित नहीं रहा , लगातार तीसरे वर्ष स्‍कोलर बैज लेने के कारण 8 वीं कक्षा में उन्‍हें नीला स्‍कोलर ब्‍लेजर भी मिल चुका था। दोनो न सिर्फ पढाई में , वरन् कुछ खेल और क्विज से संबंधित क्रियाकलापों में भी अपनी अपनी कक्षाओं में अच्‍छे स्‍थान में बनें रहें। स्‍कूली मामलों में तो इनकी सफलता से हमलोग संतुष्‍ट थे ही , 8 वीं कक्षा में भारत सरकार द्वारा राष्‍ट्रीय प्रतिभा खोज परीक्षा में भी दोनो के चयन होने पर उन्‍हें  प्रमाण पत्र दिया गया और उन्‍हें प्रतिवर्ष छात्रवृत्ति भी मिलने लगी।

पर हमारे देश की स्‍कूली व्‍यवस्‍था का प्रकोप ऐसा कि इन सब उपलब्धियों के बावजूद हमारा ध्‍यान इस ओर था कि वे दसवीं के बोर्ड की रिजल्‍ट अच्‍छा करें , ताकि इनके अपने स्‍कूल में इन्‍हें अपनी पसंद का विषय मिल सके। हालांकि डी पी एस बोकारो में ग्‍यारहवीं में दाखिला मिलने में अपने स्‍कूल के विद्यार्थियों को थोडी प्राथमिकता दी जाती है , फिर भी दाखिला नए सिरे से दसवीं बोर्ड के रिजल्‍ट से होता है। यदि इनका रिजल्‍ट गडबड हो जाता , तो इन्‍हें अपनी पसंद के विषय यानि गणित और विज्ञान पढने को नहीं मिलेंगे , जिसका कैरियर पर बुरा असर पडेगा। ग्‍यारहवीं में दूसरे स्‍कूल में पढने का अर्थ है , सारे माहौल के साथ एक बार फिर से समायोजन करना , जिसका भी पढाई पर कुछ बुरा असर पडेगा। और डी पी एस की पढाई खासकर 12वीं के साथ साथ अन्‍य प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अच्‍छी मानी जाती है , उसी के लिए हमलोग यहां आए थे , और ग्‍यारहवीं में ही यहां से निकलना पडे , तो क्‍या फायदा ?? इसलिए हमलोग 10वीं बोर्ड में बढिया रिजल्‍ट के लिए ही बच्‍चें को प्रेरित करते। आगे की यात्रा अगली कडी में ....
संगीता पुरी

Specialist in Gatyatmak Jyotish, latest research in Astrology by Mr Vidya Sagar Mahtha, I write blogs on Astrology. My book published on Gatyatmak Jyotish in a lucid style. I was selected among 100 women achievers in 2016 by the Union Minister of Women and Child Development, Mrs. Menaka Gandhi. In addition, I also had the privilege of being invited by the Hon. President Mr. Pranab Mukherjee for lunch on 22nd January, 2016. I got honoured by the Chief Minister of Uttarakhand Mr. Ramesh Pokhariyal with 'Parikalpana Award' The governor of Jharkhand Mrs. Draupadi Murmu also honoured me with ‘Aparajita Award’ श्री विद्या सागर महथा जी के द्वारा ज्योतिष मे नवीनतम शोध 'गत्यात्मक ज्योतिष' की विशेषज्ञा, इंटरनेट में 15 वर्षों से ब्लॉग लेखन में सक्रिय, सटीक भविष्यवाणियों के लिए पहचान, 'गत्यात्मक ज्योतिष' को परिभाषित करती कई पुस्तकों की लेखिका, 2016 में महिला-बाल-विकास मंत्री श्रीमती मेनका गाँधी जी और महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुख़र्जी द्वारा #100womenachievers में शामिल हो चुकी हैं। उत्तराखंड के मुख्य मंत्री श्री रमेश पोखरियाल जी के द्वारा 'परिकल्पना-सम्मान' तथा झारखण्ड की गवर्नर श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी द्वारा 'अपराजिता सम्मान' से मुझे सम्मानित होने का गौरव प्राप्त हुआ। Ph. No. - 8292466723

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