आज प्रस्तुत है .. मेरी छोटी बहन श्रीमती शालिनी खन्ना की एक रचना 'आदर्शवादी सास की बहू'.. पहले यह नुक्कड पर भी पोस्ट हो चुकी है ..
टी वी, फ्रिज, वाशिंग मशीन, स्कूटर,
क्या करूंगी ये सब लेकर,
बस एक अच्छी सी बहू चाहिए
और भला मुझे क्या चाहिए।
ऐसी बहू जो हर वक्त करे बडों की सेवा,
और न चाहत रखे मिले किसी से मेवा।‘
बोली मां संपन्न घराने में बेटे का विवाह तय कर,
और फिर चल दी,
मित्रमंडली में अपनी आदर्शवादिता की छाप छोडकर।
पर दिल में काफी इच्छाएं थी,
काफी अरमान थे,
हर समय सपने में बहू के दहेज में मिले
ढेर सारे सामान थे।
और जब बहू घर आयी,
उनकी खुशी का ठिकाना न था,
हर चीज साथ लेकर आयी थी,
उसके पास कौन सा खजाना न था।
हर तरफ दहेज का सामान फैला पडा था,
पर सास का ध्यान कहीं और अडा था।
बहू ने बगल में जो पोटली दबा रखी थी ,
इस कारण उनकी निगाह
इधर उधर नहीं हो पा रही थी।
न जाने क्या हो इसमें ,
सोंच सोंच कर परेशान थी,
बहू ने अब तक बताया नहीं ,
यह सोंचकर हैरान थी।
हो सकता है सुंदर चंद्रहार,
जो हो मां का विशेष उपहार,
या हो कोई पर्सनल चीज,
या फिर किसी महंगी कार के एडवांस पैसे ,
शायद मां ने दिए हो इसे।
पर खुद से अलग नहीं करती,
इसमें अंटके हो प्राण जैसे।
काफी देर तक सास अपना दिमाग दौडाती रही,
और मन ही मन बडबडाती रही।
कैसी बहू है ,
सास से भी घुल मिल नहीं पा रही,
अपनी पोटली थमाकर बाथरूम तक नहीं जा रही।
अब हो रही थी बर्दाश्त से बाहर,
जी चाहता हूं दे दूं इसे जहर
समझ में नहीं आता मैं क्या करूं ?
कैसे इस दुल्हन के अंदर अपना प्यार भरूं।
बहुत हिम्मत कर करीब जाकर प्यार से बोली,
बहू से बहुत मीठे स्वर में अपनी बात खोली।
'इसमें क्या है' , मेरी राजदुलारी,
इसे दबाए दबाए तो थक जाओगी प्यारी।
बहू भी काफी शांत एवं गंभीर स्वर में बोली,
आदर्शवादी सास के समक्ष पहली बार अपना मुंह खोली।
’सुना है ससुरालवाले दहेज के लिए सताते हैं,
ये लाओ, वो लाओ मायके से ये हमेशा बताते हैं।
जो मेरे साथ ऐसा बर्ताव करने की कोशिश करेगा,
वही मुझसे यह खास सबक लेगा।
उसके सामने मैं अपनी यह पोटली खोलूंगी,
इसमें रखे मूंग को उसकी छाती पर दलूंगी।‘