google.com, pub-9449484514438189, DIRECT, f08c47fec0942fa0 नगों वाला सेट ...(कहानी)

नगों वाला सेट ...(कहानी)

hamari kahani


बाजार जाने के लिए ज्‍योंहि मैं तैयार होकर बाहर निकली, बारिश शुरू हो चुकी थी। लौटकर बरामदे में एक कुर्सी डालकर एक पत्रिका हाथ में लेकर बारिश थमने का इंतजार करने लगी। बाजार के कई काम थे, बैंक से पैसे निकालने थे, राशन और सब्जियां भी लानी थी। कभी कभी बाजार निकल जाना मन लगाने के लिए तो अच्‍छा होता ही है, सेहत के लिए भी अच्‍छा रहता है। वास्‍तव में वक्‍त काटने के लिए घर में कोई काम भी तो नहीं , एक पत्रिका को इतनी बार पढ लेती हूं कि उसके एक एक शब्‍द रटे से लगते हैं। मैगजीन को एक ओर रखती हुई सामने नजर डाला , तो बारिश और तेज हो चुकी थी। पिछले तीन दिनों की तरह ही आज भी घर से निकल पाने की कोई संभावना नहीं दिख रही है। वो तो भला हुआ कि कुछ जरूरी सामान कई दिन पहले ही नौकर से मंगवा लिया था , नहीं तो आज खाने पीने की भी आफत हो जाती। कई दिनों से झमाझम बारिश जो हो रही है।


विजय को तो आफिस के लगातार प्रोमोशन के साथ ही साथ व्‍यस्‍तता इतनी बढती चली गयी थी कि अब घर के कार्यों के लिए या मेरा साथ देने के लिए उन्‍हें फुर्सत ही नहीं। जब भी उनकी इस व्‍यस्‍तता से मैं खीझ उठती हूं , मुझे किसी न किसी तरह मना ही लेते हैं। एक समय था , जब वे समय पर घर आया करते थे , जब तब ऑफिस से छुट्टी लेते थे , तब मैं ही अपनी घर गृहस्‍थी में उलझी रहती थी , तब विजय खीझ उठते थे मुझसे , अब उल्‍टा ही हो गया है। खैर, अब दो तीन वर्ष की ही तो बात है , सेवानिवृत्‍त होने के बाद आपस में सुख दुख बांटते हम दोनो दिन रात साथ साथ रह पाएंगे, मैने संतोष की सांस ली।

मानसून के आरंभ की ये बरसात भले ही किसानो के लिए वरदान हो , पर मुझे तो सारे कार्यों मे बाधा डालनेवाला असमय का बरसात नजर आ रहा था। तीन चार दिनों से ऐसा ही हो रहा था। सुबह नाश्‍ता के बाद विजय को विदा करती , तो बाई आ जाती। उसके बाद खाना बनाने का टाइम हो जाता। खाना खिलाकर जैसे ही विजय को ऑफिस भेजती , कभी मेरे तैयार होने से पहले ही बारिश आती , तो कभी मेरे तैयार होने के बाद। अजीब उलझन में फंस गयी हूं मैं , इस समय के अलावे कभी कहीं निकलने को समय ही नहीं मिलता, अकेले इतने बडे घर के देखरेख की जिम्‍मेदारी जो निभानी पड रही है।

कितने छोटे से क्‍वार्टर में मैने अपने जीवन का प्रारंभिक समय गुजार दिया था। जरूरत भर सामान भी उसमें नहीं आ पाता था। दो छोटे छोटे कमरों में ही अपनी आधी से अधिक जिंदगी काट दी थी मैने। सीमित मासिक तनख्‍वाह में अपनी जरूरतें पूरी करने में मैं हमेशा असमर्थ रहती थी। इसलिए तो एक आलोक के होने के बाद हमलोगों को किसी दूसरे बच्‍चे की इच्‍छा भी नहीं थी। हमलोग आलोक को पढा लिखाकर ऊंचे पद पर पहुंचाने का सपना देखते अपना जीवन काट रहे थे। पर इस सपने के अधूरे रहते ही हमारी लापरवाही से अचानक प्राची और प्रखर गर्भ में हलचल मचाने लगे थे। इस अहसास से मेरी हालत बहुत बुरी हो गयी थी, पर कोई उपाय न था और मुझे दोनों को एक ही साथ जन्‍म देना पडा था। आलोक तब पंद्रह वर्ष का हो चुका था और अपने अकेलापन को दूर होता देख प्राची और प्रखर के जन्‍म से बहुत खुश था।

लेकिन प्राची और प्रखर के जन्‍म के बाद भी हमने उसकी पढाई लिखाई में कोई बाधा न आने दी थी और उसने इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर इसी शहर में एक कंपनी ज्‍वाइन कर ली थी। कुछ ही दिनों में उसने हमलोगों से अपनी सहकर्मी अलका से प्रेम विवाह करने की स्‍वीकृति मांगी थी। अलका के व्‍यक्तित्‍व , पढाई लिखाई या पारिवारिक पृष्‍ठभूमि में कोई कमजोरी नहीं थी , जिसके कारण हमलोग इस विवाह को मंजूरी नहीं देते। सच तो यह था कि अलका को अपनी बहू के रूप में पाकर हम सब बहुत खुश थे , यही कारण था कि हमने पूरे उत्‍साह से भव्‍य आयोजन करते हुए उनका विवाह संपन्‍न कराया था।

उसने आते ही सारा घर संभाल लिया था। चाहे घर गृहस्‍थी का कोई मुद्दा हो या रसोई का काम , प्राची या प्रखर की पढाई हो या कोई और महत्‍वपूर्ण फैसला ... सबमें उसकी भूमिका अहम् होती। इसी कारण विजय , आलोक , प्राची और प्रखर उसे काफी महत्‍व देते। इस बात से मैं दुखी हो जाती , मुझे अक्‍सर महसूस होता कि इस घर में मेरा महत्‍व काफी कम हो गया है। समय पंख लगाकर उडता रहा , विजय ,आलोक और अलका को ऑफिस में प्रोमोशनो , प्रखर को व्‍यवसायिक सफलताओं और सबों के वैवाहिक सुखों के बौछार से , बच्‍चों के खिलखिलाहट से घर में रौनक आती गयी और सबके जीवनस्‍तर में काफी बढोत्‍तरी हुई। पर इससे परिवार के अन्‍य लोगों की तुलना मे वैचारिक दृष्टि से मैं काफी पीछे छूट गयी। मैं उसके बढते अधिकारों को देखकर चिंतित हो जाया करती, मुझे अपने अस्तित्‍व का भय सताने लगता था और इस भय के कारण ही मैं वैसे वैसे कार्यों में हस्‍तक्षेप करने लगी थी , जो एक मां की दृष्टि से अनुचित था।

फिर एक दिन वही हुआ , जिसका विजय को भय था। मेरे रोज रोज के उलाहने और बात बात पर हस्‍तक्षेप से तंग आकर आलोक और अलका किराए के एक फ्लैट में शिफ्ट कर गए। प्राची और प्रखर के लिए तो यह एक सदमा ही था। महीनों बाद ही वे सामान्‍य हो पाए, वैसे उनका भावनात्‍मक जुडाव तो उनके साथ अब भी बना हुआ है। उस दिन के बाद अकेलेपन से भयभीत मैं हमेशा विजय के सेवानिवृत्ति का इंतजार करती रही, ताकि मेरा समय भी आराम से कट सके। प्राची और प्रखर छुट्टियां व्‍यतीत करने भी अलका और आलोक के पास ही आते , इसलिए कभी कभार ही बेटी , बहू , दामाद , नाती , पोते मेरे पास आते थे , फिर दो चार घंटे में ही उनके लौटने का समय हो जाता और परिवार के वे सदस्‍य मुझे मेहमान से भी अधिक गैर नजर आते।

फोन की घंटी ने मुझे वर्तमान में लाकर खडा कर दिया था।

‘हलो’

’नमस्‍ते मम्‍मी’ फोन पर अलका ही थी।

’ओह बेटे, अभी मैं तुम्‍हें ही याद कर रही थी।‘

‘वाह, आपने तो मेरी उम्र ही बढा दी’

’वो कैसे?’

’कोई किसी को याद करे और वो उसी वक्‍त पहुंच जाए, तो उसकी उम्र बढ जाती है’

’अच्‍छा, तो बताओ, तुमलोग कैसे हो?’

’हमलोग तो अच्‍छे हैं, आप अपनी बताएं, पापा की तबियत कैसी है?’

’सबलोग अच्‍छे हैं’

’मम्‍मी, पापा के साथ कल बैंक में जाकर मेरा वो नगों वाला सेट निकालकर ले आइएगा, बुआजी के बेटे की शादी है, काफी दिनों से मैने उसे नहीं पहना है, कल शाम को आलोक जाकर ले आएंगे। परसों शाम की गाडी से हमें निकलना है।‘

’ठीक है, मुझे भी बाजार के कई काम निबटाने हैं। ऐसे तो ये व्‍यस्‍तता का बहाना बनाते हैं। तेरे नाम से छुट्टी ले ही लेंगे या ऑफिस से समय निकालकर थोडी देर पहले चल देंगे। मेरा भी टेंशन दूर हो गया। कई दिनों से बारिश की वजह से काम भी नहीं कर पा रही हूं।‘

बारिश अभी भी लगातार जारी थी , और उसके साथ मेरे विचारों की श्रृंखला भी। पता नहीं क्‍यूं , आज मन वर्तमान में टिक ही नहीं रहा था। किसी जगह पर कर्तब्‍यों का पालन करनेवालों को अधिकारों से तो वंचित नहीं किया जा सकता। पर सच ही कहा गया है , स्‍त्री की सबसे बडी दुश्‍मन स्‍त्री ही होती है। एक बच्‍ची को माता पिता अधिक लाड प्‍यार करें , तो बच्‍ची का भविष्‍य अंधकारमय नजर आने लगता है, बहू को अधिक प्‍यार देने का भी परिणाम घरवालों के लिए बुरा माना जाता है, यहां तक कि मां को अधिक प्‍यार मिले तो बहू के लिए अच्‍छा नहीं माना जाता है। सच तो यह है कि स्‍त्री के हक के विरूद्ध ये बातें स्‍त्री ही किया करती है। इस तरह पीढी दर पीढी किसी स्‍त्री को यह अधिकार ही नहीं मिल पाता , जिसकी वह हकदार है। लेकिन यह बात तो मेरे मन में आज आ रही थी , यही बात दस वर्ष पहले आ गयी होती , तो यह घर तो बिखरने से बच गया होता। मैने अलका को बहुत परेशान किया है , इसे तो मुझे स्‍वीकारना ही पडेगा। वो तो उन दोनों का बडप्‍पन ही है कि कुछ ही दिनों में सारी बातों को भूलकर वे हमारी गल्‍ती को माफ करते आए हैं।

बीती हुई घटनाएं मेरे दिमाग में चलचित्र की भांति घूमती रहती थी , अधिकांश जगहों पर दोष मेरा होता । मेरी आत्‍मा हमेशा मुझे धिक्‍कारा करती , क्‍या इस घर में अलका को प्राची सा अधिकार नहीं मिलना चाहिए था ? आखिर उसका दोष क्‍या था ? अचानक ही मेरे दिमाग ने अलका के दोषों पर ध्‍यान देना आरंभ किया। उसने क्‍या क्‍या गलतियां की थी ... एक , दो , तीन ........ गल्तियों से तो भगवान भी नहीं बच पाए , भला मनुष्‍य के जीवन में गल्तियां न मिले , बहुत सारी गल्तियां नजर आने लगी। अलका को जब भी इन गल्तियों के बारे में टोकती , आलोक और विजय उसका पक्ष लेकर मुझे ही चुप करवा देते। इन दोनो के प्‍यार से ही अलका का दिमाग चढ जाता था।

उन बातों को सोंचकर फिर मेरा तनाव घटने की बजाए बढ गया। हमारे बैंक के लॉकर में अलका का एकमात्र नगों वाला सेट ही तो बचा था , जो हमलोगों ने उसे उसके विवाह के लिए इतने चाव से खरीदा था। मायके से मिले सारे जेवर उसने धीरे धीरे मंगवा ही लिए थे, कभी किसी बहाने तो कभी किसी। आज यह सेट मंगवाकर मानो वह इस घर से रिश्‍ता ही तोड रही हो। आलोक भी कैसा मर्द है , अलका की सब हां में हां मिलाता है। खाली दिमाग शैतान का घर ही तो होता है, मेरे मन में इसी तरह की उलूल जुलूल बातें आती रही और मैं व्‍यथित होती रही। विजय के आते ही अलका के बारे में इधर उधर की बातें कहते हुए अपने मन की सारी भडास निकालने में जरा भी देर नहीं की। आलोक के दोषों को भी गिन गिनकर सुनाया। इन बातों से विजय भी परेशान और चिंतित हो गए। हम दोनों ने बेटे बहू के नालायक होने के गम में पलंग पर करवटें बदलते रात काटी। फिर विजय ने दूसरे दिन ऑफिस से छुट्टी ली और हमने सारा काम निबटाया और लौटते वक्‍त बैंक से बहू का नगों वाला सेट निकालकर ले आए।

शाम को ऑफिस से लौटता हुआ आलोक अकेले ही गेट से पापा , पापा पुकारता घर में घुसा , पर घर में बिल्‍कुल सन्‍नाटा था। सहमते हुए उसने ड्राइंग रूम में अपने कदम रखे। कोई और दिन होता , तो पापा उससे लिपट ही गए होते , पर आज हमलोग सोफे पर निर्विकार भाव से बैठे थे। इस शांति को देखकर किसी तूफान के होने के आशंका से उसका चेहरा भयभीत हो गया , पर इससे उसे जन्‍म देनेवाले हम मम्‍मी पापा के मन में कोई सहानुभूति नहीं थी । हमने उसे फटकारना आरंभ किया , एक के बाद एक ... अलका पर और उसपर तरह तरह के इल्‍जाम लगाते हुए, अपने शिकायतों का पुलिंदा खोलते हुए हमने जेवर का डब्‍बा उसके हाथ में दे दिया। ऑफिस से लौटते हुए थके हारे मूड पर इस अप्रत्‍याशित डॉट आलोक के क्रोध को कईगुणा भडका गया। वह इतने दिनों में अलका को नहीं समझ पाया था, ऐसी बात नहीं थी , अलका ने आजतक परिवार के मामले में सिर्फ सहयोग ही दिया था। पर अलका के पक्ष में कुछ कहने से तो वह ‘जोरू का गुलाम’ ही बनता, सो चुप रहना ही श्रेयस्‍कर था। उसके समझ में आ गया था कि लाख कोशिश कर‍के भी वह मम्‍मी और पापा को खुश नहीं रख सकता था, वह चुपचाप पल्‍टा, उसके कदम तेज गति से अपने घर की ओर चल पडे।

आलोक को उल्‍टा पांव लौटते देखने के बाद मैं अचानक होश में आयी , विजय के चेहरे पर परेशानी देख मेरी हालत खराब थी। मन ने कहा कि मैं आलोक से भी तेज गति से कदम बढाते हुए उसे लौटा लाऊं , पर कैसे ? आलोक से आंख या नजर मिलाने की शक्ति भी अब मुझमें नहीं बची थी। बहू के एक छोटे से नगों वाले सेट ने हमारे मध्‍य इतनी दूरी पैदा कर दी थी। एक बार फिर से मैने वह गल्‍ती दुहरायी है , जो अक्‍सर हमारे मध्‍य दूरियां पैदा करती है और जिसे न करने का संकल्‍प अक्‍सर करती आयी हूं। आज भी शायद अंत नहीं है , यह गल्‍ती मुझसे तबतक होती रहेगी ,जबतक मैं अलका और प्राची को बिल्‍कुल एक रूप में न देखूं।
संगीता पुरी

Specialist in Gatyatmak Jyotish, latest research in Astrology by Mr Vidya Sagar Mahtha, I write blogs on Astrology. My book published on Gatyatmak Jyotish in a lucid style. I was selected among 100 women achievers in 2016 by the Union Minister of Women and Child Development, Mrs. Menaka Gandhi. In addition, I also had the privilege of being invited by the Hon. President Mr. Pranab Mukherjee for lunch on 22nd January, 2016. I got honoured by the Chief Minister of Uttarakhand Mr. Ramesh Pokhariyal with 'Parikalpana Award' The governor of Jharkhand Mrs. Draupadi Murmu also honoured me with ‘Aparajita Award’ श्री विद्या सागर महथा जी के द्वारा ज्योतिष मे नवीनतम शोध 'गत्यात्मक ज्योतिष' की विशेषज्ञा, इंटरनेट में 15 वर्षों से ब्लॉग लेखन में सक्रिय, सटीक भविष्यवाणियों के लिए पहचान, 'गत्यात्मक ज्योतिष' को परिभाषित करती कई पुस्तकों की लेखिका, 2016 में महिला-बाल-विकास मंत्री श्रीमती मेनका गाँधी जी और महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुख़र्जी द्वारा #100womenachievers में शामिल हो चुकी हैं। उत्तराखंड के मुख्य मंत्री श्री रमेश पोखरियाल जी के द्वारा 'परिकल्पना-सम्मान' तथा झारखण्ड की गवर्नर श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी द्वारा 'अपराजिता सम्मान' से मुझे सम्मानित होने का गौरव प्राप्त हुआ। Ph. No. - 8292466723

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