विश्वविद्यालयों में ज्योतिष की पढाई का विरोध क्‍यूं ??

दिल्ली की एचआरडी मिनिस्ट्री छह जनवरी से एक पाठ्यक्रम शुरू करने जा रही है ,ज्योतिष और वास्तु शास्त्र को लेकर जिस तरह से टीवी चैनलों-न्यूज पेपरों मे अंधविश्‍वासी बातें सामने आ रही हैं, उसको ध्यान में रखकर देश के विद्वानों से राय लेकर  तीन महीने के इस तरह के पाठ्यक्रमों को चलाने की योजना बनायी गयी। लोगों को ज्योतिष और वास्तु शास्त्र विधाओं से परिचित कराने की जिम्मेदारी लखनऊ स्थित केंद्रीय राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान को दी गई है। इससे पूर्व भी यू जी सी द्वारा ज्‍योतिष की शिक्षा देने का कार्यक्रम बनाया गया था , पर इसे जनसामान्‍य का विरोध झेलना पडा था। पर मेरा मानना है कि किसी प्रकार का ज्ञान हर प्रकार के भ्रम का उन्‍मूलन करता है , इसलिए इसका विरोध नहीं होना चाहिए। मै पहले भी इस संबंध में आलेख लिख चुकी हूं।

जब हमारी प्राचीन वैदिक ज्ञानसंपदा सामाजिक , राजनीतिक , आर्थिक , नैतिक , धार्मिक ,वैज्ञानिक , पर्यावरणीय और स्वास्थ्य की दृष्टि से सही साबित हो रही है , तो फिर विश्वविद्यालयों में ज्योतिष की पढ़ाई को लेकर बवाल क्यों मचाया जाता है ? वैज्ञानिक संसाधनों के अभाव के बावजूद हमारे ऋषि मुनियों के द्वारा `गणित ज्योतिष´ का विकास जब इतना सटीक है , तो उन्हीं के द्वारा विकसित `फलित ज्योतिष´ अंधविश्वास कैसे हो सकता है ? भले ही सदियों की उपेक्षा के कारण वह अन्य विज्ञानों की तुलना में कुछ पीछे रह गया हो और इस कारण उसके कुछ सिद्धांत आज की कसौटी पर खरे न उतरते हों। भले ही व्यक्ति अपनी मेहनत , अपने स्तर और अपने कर्मों के अनुसार ही फल प्राप्त करता हो , किन्तु उनकी परिस्थितियों और चारित्रिक विशेषताओं पर ग्रह का ही नियंत्रण होता है और `गत्यात्मक ज्योतिष´ द्वारा इसे सिद्ध किया जा सकता है।


मानव जब जंगल में रहते थे , उस समय भी उनकी जन्मपत्री बनायी जाती , तो वैसी ही बनती , जैसी आज के युग में बनती है। वही बारह खानें होते , उन्हीं खानों में सभी ग्रहों की स्थिति होती , विंशोत्तरी के अनुसार दशाकाल का गणित भी वही होता , जैसा अभी होता है। आज भी अमेरिका जैसे उन्नत देश तथा अफ्रीका जैसे पिछड़े देश में लोगों की जन्मपत्र एक जैसी बनती है। मानव जाति ने अपने बुद्धि के प्रयोग से जंगलों की कंदराओं को छोड़कर सभ्य और प्रगतिशील समाज की स्थापना की है , ये सब किसी के भाग्य में लिखे नहीं थे , ये चिंतन , अन्वेषण और प्रयोग के ही परिणाम हैं। लेकिन यह तो मानना ही होगां कि इसके लिए प्रकृति ने अन्य जानवरों की तुलना में मानव को अतिरिक्त बुद्धि से नवाजा। यदि यह नहीं होता , तो मनुष्य आज भी पशुओं की तरह ही होते। बस इसी तरह सामूहिक तौर पर ही नहीं ,  प्रकृति व्‍यक्तिगत तौर पर भी हमारी मदद करती है। 


विश्वविद्यालय में ज्योतिष का प्रवेश विवाद का विषय नहीं होना चाहिए , विवाद सिर्फ इसपर हो कि ज्योतिष के विभाग में नियुक्ति किनकी हो और पुस्तकें कैसी रखी जाएं ? यदि इसमें भी राजनीति हुई , तो ज्योतिष जैसा पवित्र विभाग भी मैला हो जाएगा।
संगीता पुरी

Specialist in Gatyatmak Jyotish, latest research in Astrology by Mr Vidya Sagar Mahtha, I write blogs on Astrology. My book published on Gatyatmak Jyotish in a lucid style. I was selected among 100 women achievers in 2016 by the Union Minister of Women and Child Development, Mrs. Menaka Gandhi. In addition, I also had the privilege of being invited by the Hon. President Mr. Pranab Mukherjee for lunch on 22nd January, 2016. I got honoured by the Chief Minister of Uttarakhand Mr. Ramesh Pokhariyal with 'Parikalpana Award' The governor of Jharkhand Mrs. Draupadi Murmu also honoured me with ‘Aparajita Award’ श्री विद्या सागर महथा जी के द्वारा ज्योतिष मे नवीनतम शोध 'गत्यात्मक ज्योतिष' की विशेषज्ञा, इंटरनेट में 15 वर्षों से ब्लॉग लेखन में सक्रिय, सटीक भविष्यवाणियों के लिए पहचान, 'गत्यात्मक ज्योतिष' को परिभाषित करती कई पुस्तकों की लेखिका, 2016 में महिला-बाल-विकास मंत्री श्रीमती मेनका गाँधी जी और महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुख़र्जी द्वारा #100womenachievers में शामिल हो चुकी हैं। उत्तराखंड के मुख्य मंत्री श्री रमेश पोखरियाल जी के द्वारा 'परिकल्पना-सम्मान' तथा झारखण्ड की गवर्नर श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी द्वारा 'अपराजिता सम्मान' से मुझे सम्मानित होने का गौरव प्राप्त हुआ। Ph. No. - 8292466723

Please Select Embedded Mode For Blogger Comments

और नया पुराने