google.com, pub-9449484514438189, DIRECT, f08c47fec0942fa0 हम सार्थक ढंग से बाबा अम्बेदकर जयंती मनाना सकते हैं !!!!!

हम सार्थक ढंग से बाबा अम्बेदकर जयंती मनाना सकते हैं !!!!!

हमारे देश में प्राचीन काल से जो दर्शन मौजूद है इसकी सबसे बडी शक्ति इसका लचीलापन है। कुछ भी विचार , जो ईश्वर, समाज या राजनीति से सम्बन्धित है, इसके दर्शन का अंग बन सकता है। सभी महापुरूषों के विचारों को सुनना , अमल करना यहां के लोगों का स्‍वभाव है। सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में तो हमारे देश ने सभी के अनुभवों से सीख ली ही है , धार्मिक क्षेत्र में भी देखा जाए तो हाल के सालों में न जाने कितने बाबाओं , कितनी माताओं को यहां के लोगों ने भगवान बना डाला है। सिर्फ आस्तिक ही नहीं , नास्तिक दर्शन भी आसानी से हिन्दू धर्म का अंग बन सकतें हैं यानि अपने अपने विचारों और भावनाओं के साथ हर प्रकार के लोगों का यहां स्‍वागत होता रहा है , उनके अनुसार समाज में परिवर्तन आता रहा है।

वैसे तो हमारे पास इतिहास का अवतारवाद का सिद्धांत हैं, जिसके अनुसार इतिहास एक दैवी योजना के तहत् चलता है। मानव जाति को हर प्रकार का कष्‍ट झेलते हुए उस समय तक निरंतर बने रहना होता है जब तक कोई अवतार न हो। पर अम्बेदकर का मानना था कि यदि समय की सही मांग को पहचानने वाले ज्ञान चक्षु हों, उसे सही मार्ग दिखाने का साहस एवं शौर्य हो तो एक महापुरूष द्वारा भी किसी भी युग का उद्धार हो सकता है। दैवी या सामाजिक शक्तियों को मानना और झेलना हमारी मजबूरी है , पर मनुष्य इतिहास के निर्माण का एक साधन है। डॉक्टर अम्बेदकर इस मामले में दूरदर्शी माने जा सकते हैं कि वे समझते थे कि समाज के लोगो के बीच जितनी सं‍तुलित आर्थिक स्थिति होगी, उतना ही देश में विकास हो सकता है। ऐसे में जल्‍द ही भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बन सकता है। पर उनकी सोच का मतलब परिवर्तित हो गया , उन्‍हें संपूर्ण राष्‍ट्र का ना मान कर सिर्फ दलितों और पिछडो का मसीहा बना दिया।

ऐसा इसलिए क्‍योंकि अम्बेदकर ने भारत की जाति व्‍यवस्‍था को समझने के लिए अधिक श्रम और समय दिया । उनके हिसाब से आदिम समाज घुमन्तु कबीलों में बँटा समाज था, बाद में कुछ लोग गाँवों मे बस गए, किन्तु कुछ लोग घुमंतु बने रहे । कालांतर में एक समझौते के तहत किसी हमले की हालत में छितरे लोग, बसे लोगों के सुरक्षा कवच का काम और बसे हुए लोग उन्हे रहने को सीमा पर जगह और अपने मृत पशु देने लगें। भारत में यही छितरे लोग अछूत बन गए। प्राचीन वैदिक संस्कृति बलि की संस्कृति थी, नरमेध, अश्वमेध और गोमेध आदि यज्ञों में नर, अश्व, गो आदि की बलियां होती थीं और सब मिल कर सारा मांस आपस में बाँट लेते थे।

पर बुद्ध के मानवीय धर्म का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा.. बड़ी संख्या में राजाओं और आम जन ने ब्राह्मण धर्म को ठुकरा कर बुद्ध के सच्चे धर्म को अपना लिया.। ब्राह्मण संघर्षशील हो गए, देश में लगातार बौद्धो को हटाकर ब्राह्मण धर्म को पुनर्स्थापित किया जाने लगा। पर जनमामस में अहिंसा का भाव बैठ गया था जो कृषि आधारित समाज के लिये उपयोगी भी था। बौद्ध हिंसा के विरोधी होने के बावजूद ऐसे जानवर का मांस खा लेते थे जिसे उनके लिये मारा न गया हो। बौद्धो से भी दो कदम आगे निकलने के लिए ब्राह्मणों ने गोवध को सबसे बड़ा पाप घोषित कर दिया और गोमांस खाने वाले को अस्पृश्य , ऐसे में ब्राह्मण गोभक्षक से गोरक्षक बन गये। प्राचीन समझौते के तहत मृत जानवरों को ठिकाने लगाने का काम कर रहे छितरे लोगों के लिए मृत जानवरों का मांस खाना मजबूरी थी , इसलिए ये अस्पृश्य हो गये, इसकी शुरुआत अम्‍बेदकर ४०० ई. के आस पास का तय करते हैं।

अम्‍बेदकर आर्थिक सुधार का मॉडल नीचे से ऊपर की ओर रखना चाहते थे , वे सामाजिक ढांचे में दलितों को सम्मानजनक स्थान दिलाना चाहते थे। वे हिंदू समाज के आंतरिक सुधार को लेकर बहुत चिंतित थे। 1930 में गांधी जी द्वारा दलितों को हरिजन कहा जाना भी उन्‍हें अपमानजनक महसूस हुआ , न सिर्फ इसलिये कि दक्षिण भारत में मन्दिरों की देवदासियों के अवैध सन्तानो को हरिजन कहा जाता था, बल्कि इसलिये भी इस शब्द से दलित हिन्दू समाज की मुख्य धारा से अलग थलग दिखायी पडते थे। हिंदू या अन्‍य सम्प्रदायों से उनका कोई विद्वेष नहीं था। अम्बेदकर ने जब धर्म परिवर्तन का फैसला लिया तो उनको मनाने कई धर्माचार्य पहुंचे लेकिन अम्बेदकर ने सबको ठुकरा कर बौद्ध धर्म चुना था। शायद अम्बेदकर के मन में ये बात थी कि जिन दलितों ने अतीत में इस्लाम, इसाई और सिख धर्म अपनाया था समाजिक-आर्थिक रुप से उनमें कोई खास बदलाव नहीं आय़ा। जब एक हिंदू धर्माचार्य अम्बेदकर के पास हिंदू धर्म में ही बने रहने का आग्रह कर रहे थे तो अम्बेदकर ने उनसे पूछा कि क्या हिंदू समाज, शंकराचार्य के पद पर एक दलित को स्वीकार कर लेगा ?

इन दिनों महापुरूषों की जयंती भी जाति के आधार पर ही मनाई जाती है। बाबा अम्‍बेदकर भले ही संविधान के जरिये सबकी बराबरी की वकालत करते रहे मगर आज उनके नाम पर कोई भी राजनीति करने से नहीं चूक रहा। दलित अगर एकजुट हो किसी के पक्ष में मतदान कर दे तो सत्ता मिलनी तय है, पार्टियां दलितों का मसीहा क्‍यूं न बने ? सभी पार्टी अम्बेदकर के विचारों को ही पूरा करने का दंभ भरती है। इनके नाम पर सिर्फ जयंती मनाने , जुलूस निकालने या संस्‍थाओं , पुरस्‍कारों के नाम रखने और आरक्षण की राजनीति करने से कोई लाभ नहीं। दलितों के लिए हर प्रकार की सुविधाएं और उनकी आनेवाली पीढियों की प्रतिभाओं को विकास का सर्वोत्तम प्रबन्ध करके ही हम सार्थक ढंग से बाबा अम्बेदकर जयंती मना सकते हैं। तभी समाज में समता और समरसता बनी रह सकती है।
संगीता पुरी

Specialist in Gatyatmak Jyotish, latest research in Astrology by Mr Vidya Sagar Mahtha, I write blogs on Astrology. My book published on Gatyatmak Jyotish in a lucid style. I was selected among 100 women achievers in 2016 by the Union Minister of Women and Child Development, Mrs. Menaka Gandhi. In addition, I also had the privilege of being invited by the Hon. President Mr. Pranab Mukherjee for lunch on 22nd January, 2016. I got honoured by the Chief Minister of Uttarakhand Mr. Ramesh Pokhariyal with 'Parikalpana Award' The governor of Jharkhand Mrs. Draupadi Murmu also honoured me with ‘Aparajita Award’ श्री विद्या सागर महथा जी के द्वारा ज्योतिष मे नवीनतम शोध 'गत्यात्मक ज्योतिष' की विशेषज्ञा, इंटरनेट में 15 वर्षों से ब्लॉग लेखन में सक्रिय, सटीक भविष्यवाणियों के लिए पहचान, 'गत्यात्मक ज्योतिष' को परिभाषित करती कई पुस्तकों की लेखिका, 2016 में महिला-बाल-विकास मंत्री श्रीमती मेनका गाँधी जी और महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुख़र्जी द्वारा #100womenachievers में शामिल हो चुकी हैं। उत्तराखंड के मुख्य मंत्री श्री रमेश पोखरियाल जी के द्वारा 'परिकल्पना-सम्मान' तथा झारखण्ड की गवर्नर श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी द्वारा 'अपराजिता सम्मान' से मुझे सम्मानित होने का गौरव प्राप्त हुआ। Ph. No. - 8292466723

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