tag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post6703882325980458251..comments2023-10-13T16:53:53.961+05:30Comments on Gatyatmak Jyotish, Your guide to the future.: मेरी समझ से इस देश में छूआछूत की भावना इस तरह फैली होगी ??संगीता पुरी http://www.blogger.com/profile/04508740964075984362noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-52082731794613673562010-01-20T19:15:17.551+05:302010-01-20T19:15:17.551+05:30अगर छुआछुत को सफाई के उद्देअश्य से देखा जाये तो अच...अगर छुआछुत को सफाई के उद्देअश्य से देखा जाये तो अच्छा है,और कुरिति के हिसाब से बूरा,विचारौत्तेजक लेख ।vinayhttp://www.blogger.com/profile/14896278759769158828noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-90533185462520812952010-01-20T19:15:16.563+05:302010-01-20T19:15:16.563+05:30अगर छुआछुत को सफाई के उद्देअश्य से देखा जाये तो अच...अगर छुआछुत को सफाई के उद्देअश्य से देखा जाये तो अच्छा है,और कुरिति के हिसाब से बूरा,विचारौत्तेजक लेख ।vinayhttp://www.blogger.com/profile/14896278759769158828noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-3383694038562263202010-01-20T11:23:02.056+05:302010-01-20T11:23:02.056+05:30बिलकुल सही कहा आपने. क्योंकि वैदिक जीवन शैली में ...बिलकुल सही कहा आपने. क्योंकि वैदिक जीवन शैली में वर्ण व्यस्था जन्मजात न होके कर्म के अनुसार थी . सो वर्ण व्यस्था के कारण छूआछूत नहीं शुरू हुई होगी . आपके विचारों से सहमत हूँ. मैं तो यह मानता हूँ की उस समय सारे नियमों के पीछे वैज्ञानिक कारण थे.सौरभ शर्माhttp://www.blogger.com/profile/14630411796468046879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-54604553328168086762010-01-20T07:27:17.316+05:302010-01-20T07:27:17.316+05:30प्रवीण शाह जी,आप ने देखा है क्या ऐसा कभी...आर्थिक ...प्रवीण शाह जी,<br><br><b>आप ने देखा है क्या ऐसा कभी...आर्थिक रुप से जीवन स्तर में भले ही अंतर रहता हो...परंतु एक से आर्थिक स्तर का जीवन यापन करती ग्रामीण आबादी में मैंने साफ-सफाई के स्तर पर कोई अंतर नहीं देखा कभी...</b> <br><br>शूद्रों और दलितों को उनके काम के लिए आवश्यक पैसे न देकर उन्हें आर्थिक स्तर पर मजबूत रहने कहां दिया गया .. इसके कारण उनपर काम का दबाब बढा .. उसमें स्तर में गिरावट आना तो आवश्यक था।संगीता पुरीhttp://www.blogger.com/profile/04508740964075984362noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-72121401361799307052010-01-19T21:37:22.125+05:302010-01-19T21:37:22.125+05:30शिक्षा और धन की कमी ने यह दीवार खड़ी की .हमारे देश...शिक्षा और धन की कमी ने यह दीवार खड़ी की .<br><br>हमारे देश में भी पश्चिम की नकल करके सलग्न बाथरूम का प्रचलन हो गया . अब पश्चिम ही इससे दूर हट रहा है क्योंकि अस्वछ स्थान का शयन कक्ष के इतना पास होना हानिकारक है .डॉ महेश सिन्हाhttp://www.blogger.com/profile/18264755463280608959noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-68884325467822013442010-01-19T21:12:07.746+05:302010-01-19T21:12:07.746+05:30प्रवीण शाह जी,आप छोटी सी बात का बतंगड बना रहे हैं ...प्रवीण शाह जी,<br>आप छोटी सी बात का बतंगड बना रहे हैं .. जो काम हम प्रतिदिन करते है .. उसे बिल्कुल सामान्य ढंग से देखते हैं .. एक नर्स जितने अच्छे भाव से रोगियों को छूती है .. सामान्य लोग नहीं छू सकते .. मेरे मन मे शूद्रों और दलितो के लिए बहुत अच्छी भावनाएं हैं .. मेरे इस लेख में देखें ..<br> <br>http://khatrisamaj.blogspot.com/2009/12/blog-post_12.htmlसंगीता पुरीhttp://www.blogger.com/profile/04508740964075984362noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-81092559403296310132010-01-19T21:03:48.722+05:302010-01-19T21:03:48.722+05:30...पर जब धीरे धीरे जाति के आधार पर पूरे परिवार के ....<br>.<br>.<br><b>पर जब धीरे धीरे जाति के आधार पर पूरे परिवार के लिए वो काम निश्चित हुआ होगा , तो धीरे धीरे विभिन्न पेशों में लगे व्यक्ति को किसी बीमारी से ग्रस्त होने का भय जाता रहा होगा। इसी कारण लोग उन्होने स्वच्छता से रहना बंद कर दिया होगा , जिसके कारण लोग उनसे परहेज बनाने लगे होंगे , जो धीरे धीरे छूआछूत जैसी सामाजिक रूढि में बदल गया होगा।</b><br><br>आदरणीय संगीता जी,<br><br>यह क्या लिख रही हैं आप, एक तो हमारे दलित जातिवाद और छुआछूत की खाई से आज तक उबर नहीं पा रहे और आप उन पर <b>स्वच्छता से रहना बंद कर देने</b> का इल्जाम और लगाये दे रही हैं...एक बड़ा विवाद पैदा हो सकता है यहाँ...<br><br>आप ने देखा है क्या ऐसा कभी...आर्थिक रुप से जीवन स्तर में भले ही अंतर रहता हो...परंतु एक से आर्थिक स्तर का जीवन यापन करती ग्रामीण आबादी में मैंने साफ-सफाई के स्तर पर कोई अंतर नहीं देखा कभी...<br><br>छुआछूत की भावना सिर्फ झूठे और निराधार स्वयं को श्रेष्ठ समझने के जातीय दंभ, जिसे धर्म तथा धर्मग्रंथों द्वारा और पुष्ट किया गया तथा शारीरिक श्रम को हेय समझने की पुरानी भारतीय कमजोरी की देन है...इसे किसी और कारण की उपज बताना सचाई से मुँह मोड़ना है...प्रवीण शाहhttp://www.blogger.com/profile/14904134587958367033noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-2554238757026818052010-01-19T19:18:48.662+05:302010-01-19T19:18:48.662+05:30सफत आलम तैमी जी,जो बातें आप कर रहे हैं .. वे बाद म...सफत आलम तैमी जी,<br>जो बातें आप कर रहे हैं .. वे बाद में लोगों के गुमराह होने के बाद हुआ<br>.. यदि आपके कहे अनुसार ही प्राचीन काल में व्यवस्था थी .. तो फिर<br>विभिन्न जातियों के मध्य 'फूल' या 'सखा' बनाने की पद्धति प्राचीन भारत<br>में क्यूं थी .. इसका कोई जबाब है आपके पास ??<br><br>http://khatrisamaj.blogspot.com/2009/12/blog-post_28.htmlसंगीता पुरीhttp://www.blogger.com/profile/04508740964075984362noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-20299433760516046282010-01-19T18:29:12.121+05:302010-01-19T18:29:12.121+05:30सफाई का हमारे पूर्वजों ने खयाल किया और हमें भी करन...सफाई का हमारे पूर्वजों ने खयाल किया और हमें भी करना चाहिय,पर छुआछूत में तो दूसरी जातियों के साथ ऐसा व्यवहार किया जाता था <br>यहाँ तक कि यदि किसी नीची जाति के व्यक्ति ने किसी ऊँची जाती के खान पान को छु दिया तो उसकी जन के लाले per जाते थे.<br>यह तो मानवता नहींsafat alam taimihttp://www.blogger.com/profile/18294580543913457765noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-44051779838463153422010-01-19T18:13:05.721+05:302010-01-19T18:13:05.721+05:30ये विचार केवल हाथी के पैर का वर्णन कर रहे है । जो ...ये विचार केवल हाथी के पैर का वर्णन कर रहे है । जो एकदिशीय है ।Satyendra Kumarhttp://www.blogger.com/profile/16364242673453872751noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-26581356234809633262010-01-19T18:06:42.374+05:302010-01-19T18:06:42.374+05:30सही में शायद इसी तरह से कुछ हुआ होगा ...सही में शायद इसी तरह से कुछ हुआ होगा ...रंजना [रंजू भाटिया]http://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-91756523270905970922010-01-19T17:45:05.527+05:302010-01-19T17:45:05.527+05:30100% sehmat hoon aapki baat se.100% sehmat hoon aapki baat se.shikha varshneyhttp://www.blogger.com/profile/07611846269234719146noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-25748366795333401392010-01-19T17:05:03.157+05:302010-01-19T17:05:03.157+05:30विचारणीय आलेख पर मेरी समझ से वर्ण व्यवस्था के बनते...विचारणीय आलेख पर मेरी समझ से वर्ण व्यवस्था के बनते ही छुआछूत की बीमारी शुरू हो गई होगी आभार.महेन्द्र मिश्रhttp://www.blogger.com/profile/00466530125214639404noreply@blogger.com