tag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post8417267542827708161..comments2023-10-13T16:53:53.961+05:30Comments on Gatyatmak Jyotish, Your guide to the future.: एक लोकोक्ति का अर्थ स्पष्ट करें .....संगीता पुरी http://www.blogger.com/profile/04508740964075984362noreply@blogger.comBlogger21125tag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-31023394708589684282010-07-20T12:59:52.607+05:302010-07-20T12:59:52.607+05:30जानबूझकर इस पोस्ट पर देर से आई ताकि अर्थ पता चले.....जानबूझकर इस पोस्ट पर देर से आई ताकि अर्थ पता चले...और कितना कुछ पता चला..<br>सच...ब्लॉग्गिंग का यही फायदा है...इतना विस्तारपूर्वक कोई नहीं बता सकता था.<br>एक नई लोकोक्ति और उसके अर्थ दोनों पता चले.rashmi ravijahttp://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-56659216013431940112010-07-20T10:49:28.129+05:302010-07-20T10:49:28.129+05:30यह लोकोक्ति 'घाघ-भड्डरी' की है. अल्प वय मे...यह लोकोक्ति 'घाघ-भड्डरी' की है. अल्प वय में अनाथ हो चुके 'घाघ' को 'मौसम विज्ञान' की बहुत गहरी समझ थी. उनका मौसम पूर्वानुमान प्रायः सच होता था. मौसम के उपयोगी जानकारी को इन्होने लोक-मानस से जोड़ कर अनेक कहावते गढ़ी. जैसे, शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय। तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए।। उन्होंने लोक-मान्यताओं पर आधारित अनेक उक्तियाँ भी दी. जैसे दिशा-शूल के सम्बन्ध में उनका एक पद्य बड़ा प्रचलित है, 'शनि-सोम पूर्व नहि चालू ! मंगल बुध उत्तर दिशी कालू !!' इसी तरह दिशा-शूल निवारण के लिए भी उनका एक पद्य-सूत्र इस प्रकार है, <br>'रवि ताम्बूल, सोम को दर्पण !<br>भौमवार गुड़-धनिया चरबन !!<br>बुध को राई, गुरु मिठाई !<br>शुक्र कहे मोहे दधी सुहाई !!<br>शनि वे-विरंगी फांके,<br>इन्द्रहु जीती पुत्र घर आबे !!'<br>प्रस्तुत लोकोक्ति "आत न आर्द्रा जो करे , जात न जोडे हस्त। एतै में दोनो गए , पाहुन और गृहस्थ !!" भी घाघ की एक प्रसिद्द लोकोक्ति है. इसके बारे में मैं ने जितनी पढी और सुनी है उसके मुताबिक़ श्री राविकांत पाण्डेय जी के विवरण से अक्षरशः सहमत हूँ !करण समस्तीपुरीhttp://www.blogger.com/profile/10531494789610910323noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-14272127995500983352010-07-20T10:47:58.961+05:302010-07-20T10:47:58.961+05:30यह लोकोक्ति 'घाघ-भड्डरी' की लोक-कथाओं से आ...यह लोकोक्ति 'घाघ-भड्डरी' की लोक-कथाओं से आकलित है. अल्प वय में अनाथ हो चुके 'घाघ' की छोटी-छोटी बातें बड़ा महत्व रखने लगी. लोग उन्हें भविष्य वक्ता समझने लगे किन्तु सच तो यह था कि उन्हें 'मौसम विज्ञान' की बहुत गहरी समझ थी. उनका मौसम पूर्वानुमान प्रायः सच होता था. मौसम के उपयोगी जानकारी को इन्होने लोक-मानस से जोड़ कर अनेक कहावते गढ़ी. जैसे, शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय। तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए।। इसके अतिरिक्त उन्होंने लोक-मान्यताओं पर आधारित अनेक उक्तियाँ दी. जैसे दिशा-शूल के सम्बन्ध में उनका एक पद्य बड़ा प्रचलित है, 'शनि-सोम पूर्व नहि चालू ! मंगल बुध उत्तर दिशी कालू !!' इसी तरह दिशा-शूल निवारण के लिए भी उनका एक पद्य-सूत्र इस प्रकार है, <br>'रवि ताम्बूल, सोम को दर्पण !<br>भौमवार गुड़-धनिया चरबन !!<br>बुध को राई, गुरु मिठाई !<br>शुक्र कहे मोहे दधी सुहाई !!<br>शनि वे-विरंगी फांके,<br>इन्द्रहु जीती पुत्र घर आबे !!'<br>प्रस्तुत लोकोक्ति "आत न आर्द्रा जो करे , जात न जोडे हस्त। एतै में दोनो गए , पाहुन और गृहस्थ !!" भी घाघ की एक प्रसिद्द लोकोक्ति है. इसके बारे में मैं ने जितनी पढी और सुनी है उसके मुताबिक़ श्री राविकांत पाण्डेय जी के विवरण से अक्षरशः सहमत हूँकरण समस्तीपुरीhttp://www.blogger.com/profile/10531494789610910323noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-76611157993210341032010-07-20T10:44:08.679+05:302010-07-20T10:44:08.679+05:30यह लोकोक्ति 'घाघ-भड्डरी' की लोक-कथाओं से आ...यह लोकोक्ति 'घाघ-भड्डरी' की लोक-कथाओं से आकलित है. अल्प वय में अनाथ हो चुके 'घाघ' की छोटी-छोटी बातें बड़ा महत्व रखने लगी. लोग उन्हें भविष्य वक्ता समझने लगे किन्तु सच तो यह था कि उन्हें 'मौसम विज्ञान' की बहुत गहरी समझ थी. उनका मौसम पूर्वानुमान प्रायः सच होता था. मौसम के उपयोगी जानकारी को इन्होने लोक-मानस से जोड़ कर अनेक कहावते गढ़ी. जैसे १. शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय। तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए।। २. सावन पहिले पाख में, दसमी रोहिनी होय। महंग नाज अरु स्वल्प जल, विरला विलसै कोय।। इसके अतिरिक्त उन्होंने लोक-मान्यताओं पर आधारित अनेक उक्तियाँ दी. जैसे दिशा-शूल के सम्बन्ध में उनका एक पद्य बड़ा प्रचलित है,<br>शनि-सोम पूर्व नहि चालु !<br>मंगल बुध उत्तर दिशी कालू !!<br><br>इसी तरह दिशा-शूल निवारण के लिए भी उनका एक पद्य-सूत्र इस प्रकार है,<br><br>रवि ताम्बूल, सोम को दर्पण !<br>भौमवार गुड़-धनिया चरबन !!<br>बुध को राई, गुरु मिठाई !<br>शुक्र कहे मोहे दधी सुहाई !!<br>शनि वे-विरंगी फांके,<br>इन्द्रहु जीती पुत्र घर आबे !<br><br>प्रस्तुत लोकोक्ति "आत न आर्द्रा जो करे , जात न जोडे हस्त। एतै में दोनो गए , पाहुन और गृहस्थ !!" भी घाघ की एक प्रसिद्द लोकोक्ति है. इसके बारे में मैं ने जितनी पढी और सुनी है उसके मुताबिक़ श्री राविकांत पाण्डेय जी के विवरण से अक्षरशः सहमत हूँ ! आते हुए आदर (आर्द्र नक्षत्र पानी) नहीं और जाते हुए हस्त (हस्ती या हथिया नक्षत्र नहीं बरसा) बोले तो हाथ में कुछ विदाई नहीं दिया तो इसमें गृहस्थ यानी कि किसान और पाहून दोनों गए काम से !!!करण समस्तीपुरीhttp://www.blogger.com/profile/10531494789610910323noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-80248055189416236532010-07-20T08:11:38.228+05:302010-07-20T08:11:38.228+05:30मुझे नहीं पता।शायद देसिल बयना वाले करण जी जवब दें।...मुझे नहीं पता।<br>शायद देसिल बयना वाले करण जी जवब दें।हास्यफुहारhttp://www.blogger.com/profile/14559166253764445534noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-21614346911147007432010-07-19T18:58:18.295+05:302010-07-19T18:58:18.295+05:30लोकोक्ति को जानकर और टिप्पणियों के अध्ययन के बाद ...लोकोक्ति को जानकर और टिप्पणियों के अध्ययन के बाद तो ज्ञान चक्षु खुल गए | ऐसा ज्ञान और काव्य क्षमता केवल भारत में ही संभव है | लोकोक्ति के लिए धन्यवाद |शंकर फुलाराhttp://www.blogger.com/profile/02092866969143339658noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-24764697771285552492010-07-19T17:51:18.456+05:302010-07-19T17:51:18.456+05:30मैं तो हिंदी में ख़ुद ही बहुत बड़ा नालायक हूँ.... ...मैं तो हिंदी में ख़ुद ही बहुत बड़ा नालायक हूँ.... ही ही ही ही....महफूज़ अलीhttp://www.blogger.com/profile/13152343302016007973noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-38253231750828984282010-07-19T15:59:08.342+05:302010-07-19T15:59:08.342+05:30गागर में सागर जैसी है यह लोकाक्ति।...................गागर में सागर जैसी है यह लोकाक्ति।<br>................<br><a href="http://ss.samwaad.com/" rel="nofollow">नाग बाबा का कारनामा।</a><br><a href="http://sb.samwaad.com/" rel="nofollow">महिला खिलाड़ियों का ही क्यों होता है लिंग परीक्षण?</a>Science Bloggers Associationhttp://www.blogger.com/profile/11209193571602615574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-4381035986357287532010-07-19T15:50:58.706+05:302010-07-19T15:50:58.706+05:30लोकोक्ति और अर्थ दोनों ही मिल गए....लोकोक्ति और अर्थ दोनों ही मिल गए....संगीता स्वरुप ( गीत )http://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-33810138252246222582010-07-19T15:30:03.737+05:302010-07-19T15:30:03.737+05:30संगीता जी,आत न आर्द्रा जो करे,आते अतिथि का जो आदर ...संगीता जी,<br><br>आत न आर्द्रा जो करे,<br>आते अतिथि का जो आदर न करे<br>लगते आर्द्रा(नक्षत्र)में जो बोवनी न करे<br><br>जात न जोडे हस्त।<br>जाते अतिथि को हाथ जोड बिदाई न करे<br>जाते हस्त(नक्षत्र)में उपज जोड न ले<br><br>एतै में दोनो गए,<br>ऐसे में दोनो के कार्य निष्फ़ल है<br><br>पाहुन और गृहस्थ !! <br>पाहुन अर्थार्त महमान,व गृहस्थ अर्थार्त मेज़बान<br>पाहुन अर्थार्त बरसात,व गृहस्थ अर्थार्त किसानसुज्ञhttp://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-20817253766938338052010-07-19T15:28:42.322+05:302010-07-19T15:28:42.322+05:30अजीत गुप्ता जी ने एकदम सही सरलार्थ किया है.. भावार...अजीत गुप्ता जी ने एकदम सही सरलार्थ किया है.. <br><br>भावार्थ है- जीवन में विनम्र रहो<br>पाहुने का अर्थ- मेहमान<br>जय होAadarsh Rathorehttp://www.blogger.com/profile/15887158306264369734noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-32219276949024525092010-07-19T12:35:15.339+05:302010-07-19T12:35:15.339+05:30अर्थ मुझे भी नहीं पता,अगर मालुम चले मुझे भी बताइगा...अर्थ मुझे भी नहीं पता,अगर मालुम चले मुझे भी बताइगा ।vinayhttp://www.blogger.com/profile/14896278759769158828noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-2111878570731628732010-07-19T11:45:13.771+05:302010-07-19T11:45:13.771+05:30दोबारा सोचता हूँ तो लगता है कि कुछ सम्बन्ध आर्द्रा...दोबारा सोचता हूँ तो लगता है कि कुछ सम्बन्ध आर्द्रा में यव या जौ (अर्थात इस फसल की) बुआई से हो शायद, और हस्त में जाँत (चक्की, या थोड़ा अर्थ को दूर तक ले जाएँ तो शायद खेती की निराई) से अर्थ सम्बन्धित हो सकता है। मगर लगता नहीं ऐसा, क्योंकि आर्द्रा-प्रवेश की सैद्धान्तिक महत्ता सिद्ध है - अत: वही अर्थ ग्राह्य लगता है।Himanshu Mohanhttp://www.blogger.com/profile/16662169298950506955noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-68202949503024470552010-07-19T11:43:32.550+05:302010-07-19T11:43:32.550+05:30पहली बार सुनी है जीआप ही बतायेंप्रणामपहली बार सुनी है जी<br>आप ही बतायें<br><br>प्रणामअन्तर सोहिलhttp://www.blogger.com/profile/06744973625395179353noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-52701815605894149702010-07-19T11:40:51.055+05:302010-07-19T11:40:51.055+05:30आते हुए आर्द्रा में वर्षा न हो, और जाते हुए हस्त म...आते हुए आर्द्रा में वर्षा न हो, और जाते हुए हस्त में तो अकाल से गृहस्थों को संकट होगा।<br>अभिधार्थ है कि यदि आते समय पानी को न पूछे और विदा के समय हाथ जोड़कर सम्मान से न विदा करे - तो अतिथि का घोर तिरस्कार है।<br>आपकी व्याख्या की प्रतीक्षा रहेगी, मैंने यह कहावत पहले सुनी नहीं है।Himanshu Mohanhttp://www.blogger.com/profile/16662169298950506955noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-65972423546995747342010-07-19T10:39:50.218+05:302010-07-19T10:39:50.218+05:30आत न आर्द्रा जो करे , जात न जोडे हस्त। एतै में दो...आत न आर्द्रा जो करे , जात न जोडे हस्त। <br>एतै में दोनो गए , पाहुन और गृहस्थ !! <br><br>इस लोकोक्ति का अर्थ है,आने वाले अतिथि का आते जो आदर न करे,व जाता हुआ अतिथि हाथ जोड धन्यवाद न करे तो पाहुन(मह्मान)और गृहस्थ (मेज़बान)दोनो का जीवन व्यर्थ है।सुज्ञhttp://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-17258247421112769182010-07-19T10:32:00.757+05:302010-07-19T10:32:00.757+05:30संगीताजी, कहावत पहली बार सुनी है लेकिन फिर भी भावा...संगीताजी, कहावत पहली बार सुनी है लेकिन फिर भी भावार्थ करने का प्रयास कर रही हूँ। <br>आत न आर्द्रा जो करे , जात न जोडे हस्त। <br>एतै में दोनो गए , पाहुन और गृहस्थ !! <br>अतिथि के आने पर जो आदर नहीं देता और उसके जाने पर जो हाथ नहीं जोड़ता उससे मेहमान और घर वाले दोनों ही चले जाते हैं।ajit guptahttp://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-14194189569559443872010-07-19T10:01:29.939+05:302010-07-19T10:01:29.939+05:30comments must be approved by the blog authorफिर भी...<i><br>comments must be approved by the blog author<br><br>फिर भी..<br>इसका भावार्थ यह होगा ।<br><br>माघ की आर्द्रा और इस समय की हथिया ( हस्तिका ) सबके लिये बराबर है, चाहे मेहमान हों या गृहस्थ सभी अपनी जगह ठप्प पड़ जाते हैं ।<br></i>डा० अमर कुमारhttp://www.blogger.com/profile/09556018337158653778noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-89534182763252300832010-07-19T09:17:12.379+05:302010-07-19T09:17:12.379+05:30संगीता जी मेरे ब्लॉग पर टिप्पणी लिए धन्यवाद...इस ल...संगीता जी मेरे ब्लॉग पर टिप्पणी लिए धन्यवाद...<br><br>इस लोकोक्ति का अर्थ तो मै जानती नहीं हू जानेकी इच्छा है !Coralhttp://www.blogger.com/profile/18360367288330292186noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-21028023104904797182010-07-19T08:36:43.347+05:302010-07-19T08:36:43.347+05:30अर्थ कठिन नहीं है। पाहुन के आते ही यदि आदर न दिया ...अर्थ कठिन नहीं है। पाहुन के आते ही यदि आदर न दिया गया और जाते वक्त हाथ न जोड़ा गया तो रिश्ता ज्यादा दिनों तक नहीं निभता। उसमें ख्टास आने लगती है। दूसरी ओर यदि आर्द्रा नक्ष्त्र के आते ही बारिश न हुई और हस्त नक्षत्र के जाते-जाते बारिश न हुई तो कृषि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है जो गृहस्थ के लिये दुखद है। प्रकारांतर से ये लोकोक्ति ऐसे भी सुनने में आती है-<br><br>आवत आदर ना दिये जात न दिये हस्त<br>ये दोनों पछतात हैं पाहुन और गृहस्थरविकांत पाण्डेयhttp://www.blogger.com/profile/14687072907399296450noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-75448038680700275692010-07-19T08:08:55.610+05:302010-07-19T08:08:55.610+05:30बहुत अच्छी लोकोक्ति । अर्थ जानने के लिए दुब...बहुत अच्छी लोकोक्ति । अर्थ जानने के लिए दुबारा आउंगी.Divyahttp://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.com