tag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post8671635914778948558..comments2023-10-13T16:53:53.961+05:30Comments on Gatyatmak Jyotish, Your guide to the future.: एक आलेख में ये कमेंटसंगीता पुरी http://www.blogger.com/profile/04508740964075984362noreply@blogger.comBlogger43125tag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-59202973861677085712010-01-02T22:48:07.372+05:302010-01-02T22:48:07.372+05:30सागर नाहर जी .. लवली जी की पोस्ट और मेरी पोस्टों...सागर नाहर जी .. लवली जी की पोस्ट और मेरी पोस्टों में कोई विरोधाभास नहीं है .. लवली जी की सोंच बिल्कुल सही है .. और मैं उनके हर आलेख से सहमत होती हूं .. पर सच सिर्फ उतना ही नहीं होता .. जितना हमें दिखाई देता है .. हमारी आंखों से ओझल भी बहुत सारे सत्य होते हैं !!संगीता पुरीhttp://www.blogger.com/profile/04508740964075984362noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-48821914619074268522010-01-02T20:52:41.404+05:302010-01-02T20:52:41.404+05:30बड़ी ही उलझन है। संगीताजी की पोस्ट पढ़ते समय लगता है...बड़ी ही उलझन है। <br>संगीताजी की पोस्ट पढ़ते समय लगता है कि ज्योतिष, भगवान आदि सब कुछ एकदम सही है,या वे वास्तव में होते हैं।<br>यहां से उठ कर लवली जी के यहां जाकर उनकी पोस्ट पढ़ने से लगता है कि यह सब फालतू बातें है। भगवान- आदि कुछ नहीं होते।<br>क्या करूं, किधर जाऊं- एक तरफ संगीता जी एक तरफ लवली जी!!<br>:)सागर नाहरhttp://www.blogger.com/profile/16373337058059710391noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-13521412959820097072010-01-01T21:55:55.679+05:302010-01-01T21:55:55.679+05:30@स्मार्ट इंडियन - अनुराग जी हो सकता है मैं चर्चा म...@स्मार्ट इंडियन - अनुराग जी हो सकता है मैं चर्चा में आक्रामक होकर उक्त वाक्य लिख गई हूँ ..पर सवाल यह है की कौन सी सामाजिक शक्तियां भारतीय प्रत्ययवाद (खासकर माया वाद और अज्ञेयवाद) को इतना समृद्ध और प्रसिद्द करवाने में लगी थी की आज कहीं भी प्राचीन भौतिकवाद का नामलेवा कोई न बचा(आसाम -बंगाल के कुछ क्षेत्रों को छोड़ कर)?लवली कुमारी / Lovely kumarihttp://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-83272980012464573972009-12-30T19:14:52.834+05:302009-12-30T19:14:52.834+05:30पर एक साख्य दर्शन भी हुआ करता था हिन्दू धर्म में उ...<b>पर एक साख्य दर्शन भी हुआ करता था हिन्दू धर्म में उसे ब्राह्मणों ने किस कारण अछूत कर रखा है उसका कारण आप बताएंगी ? क्या सिर्फ इसलिए की वह निरीश्वर वादी दर्शन था..?</b><br>ऐसा क्या? अन्यदर्शनों की तरह सांख्य दर्शन के प्रवर्तक भी ब्राह्मण ही थे. सभी भारतीय दार्शनिक सत्यशोधक ही थे.Smart Indian - स्मार्ट इंडियनhttp://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-4082640822942838382009-12-29T12:06:41.946+05:302009-12-29T12:06:41.946+05:30अच्छा तो मुझे भी लगता है आपका स्वभाव, आपके विचार.आ...अच्छा तो मुझे भी लगता है आपका स्वभाव, आपके विचार.आप,सिद्धार्थ जोशी जी ऐसे ज्योतिष है जिनसे मैं अक्सर संवाद कर पाने की स्थिति में होती हूँ. कई लोग तो सीधे मुझे यूरोपीय देशो का वक्ता और भारतीय प्राचीन ज्ञान का विरोधी बताते हैं. अपनी -अपनी सोंच है किस किस को समझाया जाय...बेहतर होगा अपना काम करती रहूँ . लोगों को जवाब मिलाता रहेगा. यह भी योजना है की कभी निरीश्वर वादी प्राचीन भारतीय दर्शन पर कुछ लिखूं पर पहले मनोविज्ञान फिर और कुछ.लवली कुमारी / Lovely kumarihttp://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-24683944352437361402009-12-29T08:31:43.286+05:302009-12-29T08:31:43.286+05:30लवली जी .. मैने पहले ही एक आलेख में लिखा है कि जब ...लवली जी .. मैने पहले ही एक आलेख में लिखा है कि जब दो व्यक्ति का लक्ष्य अच्छा होता है .. तो वे प्रतिस्पर्धी हो जाते हैं .. जबकि जिनका लक्ष्य बुरा होता है .. उनमें बडी दोस्ती होती है .. यही कारण है कि बुरे लोगों का लक्ष्य पूरा हो जाता है .. और अच्छे लोग अपने लक्ष्य में कामयाबी नहीं पाते .. पर मैं ऐसा नहीं होने देना चाहती .. मैं तो उन सभी लोगों को साथ लेकर काम करूंगी .. जो समाज के लिए बेहतर व्यवस्था का लक्ष्य रखते हैं .. विश्वास में लेकर मैं अपने कार्यक्रमों में आपको अवश्य साथ रखूंगी .. क्यूंकि आपका तेवर मुझे अच्छज्ञ लगा !!संगीता पुरीhttp://www.blogger.com/profile/04508740964075984362noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-238714573139667942009-12-28T21:01:42.826+05:302009-12-28T21:01:42.826+05:30Roman likhne ke liye sabse pahle maafi chaahti hoo...Roman likhne ke liye sabse pahle maafi chaahti hoon, abhi pc me hindi font nahi hai.<br><br>dharm aur vigyaan par saal se Bahas hota aa raha hai aura hota rahega, kyunki dharm aur vigyaan dono hi manav man ki upaj hai (aisa mujhe lagta hai) Insaan apane apane soch se chalta hai,aur chalta rahega.<br><br>Na mai atyant dharmik hoon na Adharmik hoon, mai ise kuchh aise samajh sakti hoon ki mai jitna sangeeta ji ko padhti hoon Utna hi lovely ko bhi, na hi padhti hoon balki sahmat bhi hoti hoon, ab iska matlab ye nahi banta ki mai ek confused personality hoon (kam se kam meri apani najar me).<br><br>Mai hamesha is baat se pareshaan rahi ki agar ishwar ek hai to log use alag alag naamo se kyun jante hain? Ishwar agar satya hai to Satya ek hi kyun nahi hai? Ishwar agar asatya hai to iske pichhe log diwane kyun ban gaye? Haan par asatya se deewangi bhi ho sakti hai…. Haan shayad<br><br>Iska jawaab mujhe khood se kuchh aisa mila ki, mai Hoon aur mere honepan me kaii roop chhipe hain, aur sabhi sach hai, jhutha ek bhi nahi, pratek insaan mujhe alag alag roop me jaanta hai, to iska matlab ye kataii nahi ki mai ek jhooth hoon, meri samajh me ye aaya ki ishwar ke saath aisa hi kuchh hoga.<br><br>Ishwar, Bhagwaan, Karmkand, wagairah wagairah naam mere kaano me bachpan se pade jinse chhutkaara paana asaan nahi hoga, par mai paana bhi nahi chaahti.<br><br>Dharm ko kaha jaata hai “jise dharan kiya jaa sake wo dharm hai” yaani ki mera aachrana, aahar vihaar, khana pina, padhna likhna, etc etc sabkuchh dharm hai.<br><br>Dharma Samajik vyawastha bhi aur wyaktigat wywastha bhi. Dharm Samyak banaata hai. Par yeh sab aisa lagta hai ki maansik khel hai. Ho sakta hai iske pare bhi ho, par uske pare soch sakun abhi wo sthiti nahi pahuchi.<br><br>Vigyaan, yah bhi to yahi hai, kisi topic ko samjhna, uspar kaam karma nishkarsh nikaalna, amal karma, itna hi samjhti hoon. Jaise koi beemaari hai to uske kaaran ke bare me jaana, usko theek karne ke liye research kiya, medicine banaaii, aur theek kiya, par yeh sab bhi dimaagi halchal hai, mara huwa dimaag na dharm ke bare me soch sakta hai na vigyaan ke bare me.<br><br>Ab baati aatii hai sahmati asahmati ki to wo to chalta rahega, harek insaan ke sochne ka dhang alag hota hai aur isi kaaran vikaas hota hai, yahi sochne ka tarika jab kahi atak jaye to samaj ka vikaas ruk jaata hai…<br><br>Mai samjhti hoon Dharm aur Vigyaan do alag alag shabd maatra hai bhaaw wahi hai…. Insani soch…गरिमाhttp://www.blogger.com/profile/12713507798975161901noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-47903029134432890192009-12-28T20:36:30.861+05:302009-12-28T20:36:30.861+05:30संगीता जी मुझे जो कहना था मैं कह चुकी ..अब कुछ नही...संगीता जी मुझे जो कहना था मैं कह चुकी ..अब कुछ नही कहना. आप अपना काम करिए मैं अपना करुँगी ..हो सकता है हमारे रश्ते अलग हो पर हम दोनों ही समाज का भला चाहते हैं. आप अपना प्रयास जारी रखें मैं अपना जारी रखूंगी लोगों को अधिकार है पक्ष चुनने का. वे जिसे ठीक समझेंगे चुनेगे. बात यही खत्म हो जानी चाहिए. आपके लक्ष्य के लिए शुभकामनाएं.लवली कुमारी / Lovely kumarihttp://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-51874581579589428392009-12-28T20:13:59.691+05:302009-12-28T20:13:59.691+05:30पोस्ट का मुत्व इसी वात से साबित होता है कि इसमें प...पोस्ट का मुत्व इसी वात से साबित होता है कि इसमें पोस्ट से बड़े कमेंट हैं!डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंकhttp://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-64570227334199381252009-12-28T17:03:19.884+05:302009-12-28T17:03:19.884+05:30लवली जी .. आज के युग में आप जिसे तीव्र आलोक कह रही...लवली जी .. आज के युग में आप जिसे तीव्र आलोक कह रही हैं .. वह एक प्रतिशत लोगों के लिए भी नहीं हैं .. मैं तो उन 99 प्रतिशत लोगों की चिंता में हूं .. जिन्हें आज इन एक प्रतिशत लोगों को तीव्र आलोक देने के लिए प्राकृतिक संसाधन विहीन होकर घटाटोप में जीना पड रहा है .. और आनेवाले काल में भी विज्ञान के सहारे उनके लिए तीव्र आलोक में जीने की कोई संभावना मुझे नहीं दिखती .. इसलिए अब बेकार की व्याख्या में मुझे पडना भी नहीं .. चिंतन करते हुए उनके लिए तो कोई रास्ता निकालना ही है .. उनके लिए भी रास्ता निकालना है .. जो आज के तीव्र आलोक में जीने के बावजूद भी आज की सामाजिक राजनीतिक स्थिति से लाचार परेशान मेरी सलाह की आवश्यकता समझते हें .. पर मैं मेहनत करके भी कोई उपाय निकाल ही पाऊंगी .. यह तबतक नहीं कह सकती .. जबतक प्रकृति मेरा सहयोग ना करे .. क्यूंकि यदि इस कार्यक्रम के दौरान ही कोई दुर्योग आ सकता है .. या तो मेरी मौत हो जाए .. या मैं पागल हो जाऊं .. या मैं अपंग हो जाऊं .. तो मेरा सारा कार्यक्रम तो अधर में ही रह जाएगा ना .. इस हालत में आप ही बताएं .. चेतना और बुद्धि से क्या कर पाऊंगी मैं ??संगीता पुरीhttp://www.blogger.com/profile/04508740964075984362noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-28922534150447899622009-12-28T16:16:31.447+05:302009-12-28T16:16:31.447+05:30sangita ji bhash achhi hai.bas aap dhaem or vigkya...sangita ji bhash achhi hai.bas aap dhaem or vigkyan ke bich me fas kar rh gai hai vigkyan hi dharm hai jaha isme tark dekar aadmi ne apne anurup kar liya vaha vghyan rha nahi or vghyan nahi to dharm bhi nahi rha . aap ke dharm vo tathye galat hai jo vigjyan nahi hai. hum dharm ke anurup na chal ke dharm ko apne anurup bana liya . isliye dharm galat ho gaya vighyan tark pr nahi satyata pr chalta hai. saty ka tark nahi hota . tark apne anusar dete hai jo galat ho sakta hai.vighyan hi dharm hai . ane duara banye gaye dham galat hai .blog- adhura darpan.Dr.Adhurahttp://www.blogger.com/profile/00694900449853395636noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-17543017764048724212009-12-28T14:02:37.666+05:302009-12-28T14:02:37.666+05:30अच्छी बहस के लिए संगीता जी को और लवली जी को धन्यवा...अच्छी बहस के लिए संगीता जी को और लवली जी को धन्यवाद !!!!!!प्रवीण त्रिवेदी ╬ PRAVEEN TRIVEDIhttp://www.blogger.com/profile/02126789872105792906noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-75359851748655348362009-12-28T13:21:59.447+05:302009-12-28T13:21:59.447+05:30अरविन्द जी,मुझे किसी की मुझसे सहमती/असहमति से कोई ...अरविन्द जी,<br>मुझे किसी की मुझसे सहमती/असहमति से कोई विशेष सरोकार नही है. जिन्हें अपनी आँखे खोलकर ज्ञान के प्रकाश को देखने से भय होता है ..उनपर मैं कुछ नही कहना चाहूंगी. सच है की घटाघोप में अभ्यस्त आँखें अचानक तीव्र आलोक से चौंधिया ही जाती है..अभी वक्त लगेगा पर इस कारण न समझौता होगा न समर्पण.<br>व्याख्याओं में पड़कर मूल पाठ की अनदेखी मुझसे न हो सकेगी. मैं बार -बार कहूँगी <b>हम मनुष्य प्रकृति के रहमोकरम पर नही अपनी चेतना और बुद्धि के उपयोग पर जिन्दा हैं जो स्वअर्जित है. </b>किसी के पास कोई अन्य तर्क है तब उसका स्वागत है. <br>इतिलवली कुमारी / Lovely kumarihttp://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-41237293032555532062009-12-28T12:58:34.043+05:302009-12-28T12:58:34.043+05:30अर्कजेश जी,आपके मुख्य विंदुओं में से कुछ से सहमत ...अर्कजेश जी,<br>आपके मुख्य विंदुओं में से कुछ से सहमत और कुछ से असहमत हूं ...<br><br>1 संगठित धर्मों को विदा होना चाहिए । तभी धर्म के नाम पर शोषण रुक सकता है । <br>सहमत।<br><br>2 धर्म निहायत व्यक्तिगत होना चाहिए , सामाजिक नहीं <br>संगठित धर्म विदा हो जाएं .. तो नए नियमों का संविधान बनाना ही होगा .. धर्म पालन व्यक्तिगत होगा तो व्यक्ति अपने सुख के लिए कुछ भी कर सकते हैं।<br><br>3 धर्म का कोई एक विशेष सिद्धांत नहीं है जिसे लेकर बहस की जाय <br>विशेष सिद्धांत हो न हों .. धर्म के मूल तत्व तो होने ही चाहिए।<br><br>4 बहस के केंन्द्र में सिर्फ ईश्वरवादी धर्म हैं , सामान्यत: जो आम मानस में प्रचलित है । जबकि धार्मिकता के लिए किसी विचारधारा का अनुसरण करना जरूरी नहीं है <br>गलत .. किसी भी विचार धारा को तो मानना ही होगा .. विचारधारा को जमाने के उपयुक्त बनाना होगा।<br><br>5 धर्म कोई सामाजिक व्यवस्था नहीं है और न ही किसी भी व्यक्ति के किसी कदम से इसे कोई खतरा है <br>दो चार व्यक्ति के गलत कदम उठाने से धर्म को खतरा नहीं हो सकता .. पर सारे लोग मनमानी कर लें तो दुनिया कैसे चले ?<br><br>6 धर्म भी एक विज्ञान है और धर्म और विज्ञान में कोई झगडा नहीं है <br>सहमत .. धर्म के नियम यदि विज्ञान के अनुरूप नहीं है तो इसे बनाया जाना चाहिए। <br><br>7 धार्मिक होने के लिए आस्तिकता अनिवार्य नहीं है, यह अवधारणा बहुत ही संकुचित है कि नास्तिक धार्मिक नहीं है । <br><br>सहमत .. मेरे पिताजी भी सच्च्े धार्मिक हैं .. पर आजतक उन्होने पूजा नहीं की .. किसी देवता या देवी के आगे सर नहीं झुकाया .. पर सर्वशक्तिमान को मानते हैं .. वे ऐसे दिनों में हजामत करवाते आ रहे हैं .. जो इसके लिए मना किए गए हैं .. वो इस कारण कि उस दिन भीड कम होती है।<br><br>8 बुद्ध से बडा धार्मिक नास्तिक कौन होगा । जो कि आत्मा के अस्तित्व से भी इंकार करते हैं । <br>सहमत।<br><br>9 धर्म को खतरे की बात इसलिए होती है क्योंकि ऐसा कहते वक्त किसी एक सम्प्रदाय को ख्याल में रखा जाता है<br>सहमत।<br><br>10 'सार' अस्तित्व से पहले है । <br>सहमत।<br><br>11 धर्म ने ज्ञान को दबाकर रखा है और विज्ञान ने उसे सबके लिए सुलभ किया है ।<br>असहमत .. धर्म का असली उद्देश्य अज्ञान को दूर कर ज्ञान के प्रकाश को फैलाना रहा है .. पर इसकी पवित्रता प्राचीनकाल से ही लोगों को स्वीकार्य नहीं होती है .. और असामाजिक तत्व इसके माध्यम से इसे दूषित करने का प्रयास करते आ रहे हैं .. ऐसे लोगों को धर्म से बाहर करने की आवश्यकता है।संगीता पुरीhttp://www.blogger.com/profile/04508740964075984362noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-86262755672888724182009-12-28T11:37:21.993+05:302009-12-28T11:37:21.993+05:30@ अर्केजेश जी - मैंने पहली टिप्पणी के पहले वाक्य ...@ अर्केजेश जी - मैंने पहली टिप्पणी के पहले वाक्य में कहा है - धर्म को संप्रदाय के अर्थ में लेना कुछ सही नही लगता .... और शेष किसी बिंदु पर चर्चा करनी हो तब पोस्ट लिखें और उसका लिंक मुझे मेल कर दें.<br>@द्विवदी जी - कभी मौका मिला तब भारतीय पौराणिक विज्ञान और दर्शन पर लिखें ..मैं अभी कुछ समय मनोविज्ञान पर ही लिखूंगी.लवली कुमारी / Lovely kumarihttp://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-6041603150275775792009-12-28T11:12:23.876+05:302009-12-28T11:12:23.876+05:30...भाई जीशान जैदी कहते हैं:-"ईश्वर के बारे मे....<br>.<br>.<br>भाई जीशान जैदी कहते हैं:-<br><br>"ईश्वर के बारे में बिना कुछ सोचे समझे उसे सिरे से नकार देना भी एक अंधविश्वास ही है. और अवैज्ञानिक भी..."<br><br>मेरे विचार में तो 'ईश्वर' की अवधारणा को आप तब ही मान सकते हैं जब आप उस विषय में स्वयं कुछ भी सोचे-समझे बगैर केवल उन बातों पर विश्वास कर ले जो हमारे ही कुछ पुरखे संस्कृत, अरबी, हिब्रू, पारसी आदि जबानों में लिख गये हैं। धर्म संबंधी अपने पूर्वाग्रहों को दरकिनार कर, तर्क और तथ्य पर भरोसा कर यदि नतीजा निकाला जाये तो हर कोई इस नतीजे पर ही पहुंचेगा कि <b>धर्म, ईश्वर, धर्मग्रंथ, कर्मकान्ड, स्वर्ग-नर्क और कर्मफल आदि आदि का यह प्रपंच मानव के दिमाग का सबसे मौलिक और सबसे खतरनाक आविष्कार है जिसने आज तक बहुत खून बहाया है और आगे भी बहायेगा । यथास्थिति (STATUS QUO) को बनाये रखने के लिये क्योंकि यह प्रपंच मददगार है इसलिये जानने समझने वाले भी इस प्रपंच को बेनकाब करने के बजाय पुष्ट करते रहते हैं। </b><br><br>आस्था और विश्वास का खोखला तर्क देने वालों से मेरा कहना है कि <b>"मेरी आस्था है, मेरा विश्वास है और मेरी किताब में भी लिखा है कि चांद तो गाय के दूध से निकाले मक्खन से बना है! इसीलिये सफेद है।"</b> अब आप कुछ भी सबूत दो, तर्क करो या समझाओ, मैं तो तभी मानूंगा जब तक कि खुद न देख लूं अब इस जीवन में मैं तो चांद पर पहुंचने से रहा... <b> तो फिर हो गया न चांद गाय के दूध से बनाये मक्खन का !!!</b>प्रवीण शाहhttp://www.blogger.com/profile/14904134587958367033noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-64241189894510709842009-12-28T09:22:27.163+05:302009-12-28T09:22:27.163+05:30देर से आया ...क्षुब्ध हूँ -लीलावती -गार्गी संवाद ...देर से आया ...क्षुब्ध हूँ -<br>लीलावती -गार्गी संवाद से श्रोत द्वय धन्य और ज्ञान रंध्र संतृप्त हुए ! कहीं की विज्ञान चर्चा कहीं हो गयी -जो नित्य नियमित होना ही चाहिए -कहीं का कहीं भी चलेगा ! मैं आँख कान गडाए कहीं और देख रहा था और ज्ञान की निर्झरिणी यहाँ बह रही थी कल कल निनाद करती !<br>मुझे तो लगता है, न ही लीलावती और न हीं गार्गी अपने अपने अलग रूपं ज्ञान में स्वीकार्य हो पाएगीं जन मनीषा को -क्या ही अच्छा हो दोनों के एक साझा समन्वित रूपाकार की निर्मिति हो और हम नतमस्तक हो जाएँ !Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-9532058036046829012009-12-28T08:01:34.695+05:302009-12-28T08:01:34.695+05:30Main andh vishwasi bhi hun aur bhagmaan ko manti h...Main andh vishwasi bhi hun aur bhagmaan ko manti hun. Apaka aalekh achchha laga.हास्यफुहारhttp://www.blogger.com/profile/14559166253764445534noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-27478513367181328452009-12-28T00:47:56.235+05:302009-12-28T00:47:56.235+05:30चर्चा के मुख्य बिंदु पूरी तरह स्पष्ट न होने पर ...चर्चा के मुख्य बिंदु पूरी तरह स्पष्ट न होने पर भी कुछ बाते कह रहा हूं । <br><br>1 संगठित धर्मों को विदा होना चाहिए । तभी धर्म के नाम पर शोषण रुक सकता है । <br><br>2 धर्म निहायत व्यक्तिगत होना चाहिए , सामाजिक नहीं <br><br>3 धर्म का कोई एक विशेष सिद्धांत नहीं है जिसे लेकर बहस की जाय <br><br>4 बहस के केंन्द्र में सिर्फ ईश्वरवादी धर्म हैं , सामान्यत: जो आम मानस में प्रचलित है । जबकि धार्मिकता के लिए किसी विचारधारा का अनुसरण करना जरूरी नहीं है <br><br>5 धर्म कोई सामाजिक व्यवस्था नहीं है और न ही किसी भी व्यक्ति के किसी कदम से इसे कोई खतरा है <br><br>6 धर्म भी एक विज्ञान है और धर्म और विज्ञान में कोई झगडा नहीं है <br><br>7 धार्मिक होने के लिए आस्तिकता अनिवार्य नहीं है, यह अवधारणा बहुत ही संकुचित है कि नास्तिक धार्मिक नहीं है । <br><br>8 बुद्ध से बडा धार्मिक नास्तिक कौन होगा । जो कि आत्मा के अस्तित्व से भी इंकार करते हैं । <br><br>9 धर्म को खतरे की बात इसलिए होती है क्योंकि ऐसा कहते वक्त किसी एक सम्प्रदाय को ख्याल में रखा जाता है<br><br>10 'सार' अस्तित्व से पहले है । <br><br>11 धर्म ने ज्ञान को दबाकर रखा है और विज्ञान ने उसे सबके लिए सुलभ किया है ।अर्कजेशhttp://www.blogger.com/profile/11173182509440667769noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-75461902695566719562009-12-28T00:09:09.356+05:302009-12-28T00:09:09.356+05:30लवली जी, सांख्य तब भी सब भारतीय दर्शनों पर भारी था...लवली जी, सांख्य तब भी सब भारतीय दर्शनों पर भारी था इस लिए कि उस की अवधारणाएँ वैज्ञानिक थीं। और आज भी उस की मूल अवधारणाएँ उतनी ही सही हैं। एक अच्छी बहस के लिए संगीता जी को और लवली जी को साधुवाद । पर यह तो बहस का आरंभ मात्र है।दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedihttp://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-9321925048441997522009-12-27T22:07:11.680+05:302009-12-27T22:07:11.680+05:30अच्छा लगा इस लेख की लेखिका संगीता जी और लवली जी की...अच्छा लगा इस लेख की लेखिका संगीता जी और लवली जी की स्वसथ बहस देख दोनों की अपनी,अपनी विचारधारा है,प्रक्रिती के नियमों को ही विज्ञान प्रतिपादित करता है,कुछ लोगों ने धर्म को अपने स्वारथों के कारण कलकिंत कर दिया है,अब तक मेंने पड़ी हुई देखी हुई चीजो के बारे में अपने अनुभब लिखे हैं और टिप्पणी दी है,परन्तु आपने और लवली जी ने तथ्यो को जानने के लिये और अध्यन्न के लिये प्रेरित कर दिया,आप दोनों को तहदिल से धन्यवाद ।vinayhttp://www.blogger.com/profile/14896278759769158828noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-88234033083194557422009-12-27T21:40:27.692+05:302009-12-27T21:40:27.692+05:30mhodya dhnyvad man liya pr meri bat shayd dhnyava...mhodya dhnyvad man liya pr meri bat shayd dhnyavad ke kabil hi n ho fir bhi <br>aaj sb se jyada dhrm shbd ka drupuog ho rha hai dhrm ke vastvik ttv v art ko smjhe bina hi hm dhrm 2 chila kr dhrmik bnne or hone ka dhong rch rhe hai sb jante haun dhrm sty se shuru hota hai pr aaj sty ki kya sithit hai sb ko pta hai kon dusara hirsh chndr paida hua hai any lkshno ki chrcha to bad ki bat hai lvli ji ki bat se main bhi shmt hoon ki mt ko bhi dhrm btaya ja rha hai jo anuchit hai or isi se sara ghal mel huaa hai yh lmbi bhs hai vaise bhs to bekar hi haiaachrn hi mhtvpoorn hai yntr pr likhna mere liye kuchh kthin hai yh to shj bhav se sauhard purn vatavrn men mil baith kr aadan prda ki bat hai <br>dr. ved vyathit@gmail.comvedvyathithttp://www.blogger.com/profile/02253588002622732897noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-14084536066050244412009-12-27T19:23:57.925+05:302009-12-27T19:23:57.925+05:30सचमुच आज तो मजा आ गया , संगीता जी, आप का और लावली ...सचमुच आज तो मजा आ गया , संगीता जी, आप का और लावली जी की बहस पढ़ करके, दोनों एक दुसरे पर भारी,<br>लेकिन मेरा खुद का मानना है की प्रकृति और विज्ञान दोनों की जरुरत है. एक विकसित समाज को मजबूत बनाने के लिए, लेकिन प्रकृति का कोई जबाब नहीं है, प्रकृति की ही देन है की इन्सान और जानवर अलग -अलग नजर आते है।Tarkeshwar Girihttp://www.blogger.com/profile/06692811488153405861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-3633818896548800042009-12-27T19:22:08.773+05:302009-12-27T19:22:08.773+05:30ईश्वर के बारे में बिना कुछ सोचे समझे उसे सिरे से न...ईश्वर के बारे में बिना कुछ सोचे समझे उसे सिरे से नकार देना भी एक अंधविश्वास ही है. और अवैज्ञानिक भी.zeashan zaidihttp://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3107403587472938440.post-36811245676791759412009-12-27T18:44:58.782+05:302009-12-27T18:44:58.782+05:30आपको भी बहुत बहुत धन्यवाद लवली जी .. मेरे चिंतन क...आपको भी बहुत बहुत धन्यवाद लवली जी .. मेरे चिंतन के लिए आपने कई और नए विंदु दिए !!संगीता पुरीhttp://www.blogger.com/profile/04508740964075984362noreply@blogger.com