पहले अंडा या मुर्गी , ये फैसला तो आज तक न हो सका है और न हो पाएगा , पर इसी तर्ज पर कुछ दिनों से एक महत्वपूर्ण विषय पर मैं चिंतन कर रही थी , जन्म के आधार पर भाग्य निश्चित होता है या भाग्य के निश्चित होने पर जन्म की तिथि निश्चित होती है। संयोग से उसी आसपास पापाजी भी बोकारो पहुंच गए , हमेशा की तरह ही इस बार भी मेरे प्रश्नों की झडी तैयार थी। पर जहां पहले मैं मेरे प्रश्नों की झडी से वे ऊब से जाया करते , हाल के वर्षों में वे किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले मेरे अनुभव का भी ख्याल रखते हैं। वर्षों के अनुभव और चार दिनों तक हुई गंभीर बहस के बाद हमलोग इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि बच्चे का स्वभाव और उसकी जीवन यात्रा पहले से तय होती है , उसी के अनुसार उसके जन्म लेने का समय तय होता है। दरअसल गर्भावस्था के दौरान ही बच्चे की मां और बच्चे की परिस्थितियों और जन्म के पश्चात बनने वाली बच्चे की जन्मकुंडलियों में समानता को देखते हुए हमने ऐसा समझा।
अभी तक ज्योतिष शास्त्र ये मानता आया है कि भूण के बनने के हिसाब से बच्चों का भाग्य निश्चित नहीं होता , जन्म के बाद बच्चे जो प्रथम श्वास ग्रहण करते हैं, उसी वक्त ब्रह्मांड में मौजूद ग्रहों का प्रभाव किसी बच्चे पर पडता है , जिससे उसका स्वभाव और उसकी जीवनयात्रा निश्चित होती है , जिसे जन्मकुंडली में देखा जा सकता है। इस आधार पर बालारिष्ट रोगों का कारक ग्रह चंद्रमा यदि जन्म के वक्त कमजोर हो , तो जन्म के बाद बच्चे के स्वास्थ्य में गडबडी आती है। पर अध्ययन के क्रम में कई कुंडलियों में हमने पाया कि जन्म के वक्त रहनेवाले कमजोर चंद्रमा के कारण या तो घर की आर्थिक स्थिति गडबड थी या माता पिता के द्वारा किसी प्रकार की लापरवाही हुई , जिसके कारण गर्भावस्था के दौरान ही कई बच्चों के शारीरिक विकास में बाधा उपस्थित हुई थी ।
ऐसा महसूस करने पर हमलोगों ने खास विशेषतावाले 100 बच्चों की माताओं से बात चीत की। जन्मकुंडली के हिसाब से बच्चों के जिन जिन पक्षों को मजबूत होना चाहिए था , वे उनकी गर्भावस्था के दौरान उनकी माताओं के द्वारा महसूस किए गए। गर्भावस्था के दौरान लगभग सभी महिलाओं ने अपने व्यवहार में ये विशेषताएं पायी थी , जो उनके बच्चों में बाद में देखने को मिली। हमारे ग्रंथों में माता के व्यवहार का बच्चों पर प्रभाव के बारे में चर्चा है , पर हमने महसूस किया कि अलग अलग बच्चें के स्वभाव के हिसाब से माता के व्यवहार या स्वास्थ्य या मानसिक क्रियाकलापों में अंतर देखने को मिला। पर हमलोग इस प्रकार के रिसर्च के बिल्कुल प्रारंभिक दौर में थे , इसलिए इस निष्कर्ष को लेकर दावा नहीं कर सकते थे , चिंतन अवश्य बना हुआ था , पर यह भ्रम था या हकीकत , समझ में नहीं आ रहा था।
पर यह भ्रम पिछले शनिवार यानि 23 अक्तूबर को हकीकत में बदल गया। घटना यह हुई कि कुछ दिन पहले ही बोकारो से मेरी एक महिला मित्र अपनी गर्भवती पुत्री के पास दिन पूरे होने के लगभग दिल्ली पहुंच गई थी। उसकी पुत्री एक दिन पहले से ही अस्पताल में भर्ती थी , इसकी खबर लगते ही मैने दो बजे आसपास उनसे बात की। वो काफी घबडायी हुई थी , बिटिया को पांच घंटे पूर्व ही लेबर रूम ले जाया गया था , पूरे परिवार के लोग जमा थे और अंदर से कोई खबर भी नहीं आ रही थी। जब भी भविष्य अनिश्चित सा लगता है , मुझसे लोग भविष्य के बारे में जानना चाहते हैं। माता पिता जानना चाह रहे थे कि इसमें कितनी देर हो सकती है।
फोन रखने के बाद मैने पंचांग निकाला , पूर्णमासी का दिन था और साढे पांच बजे से साढे सात बजे के मध्य चांद पूर्वी दिशा में उदय होने वाला था। उस वक्त बच्चे का जन्म हो , तो जन्मकुंडली में लग्नचंदा योग बनेगा , इस योग के बारे में कहा जाता है कि इसमें जन्म लेने वाला बच्चा पूरे परिवार का लाडला और प्यारा होता है। लग्नचंदा योग यदि पूर्णिमा के दिन बनें , तो इसकी बात ही अलग होती है। वैसे तो अपने माता पिता के लिए हर बच्चा प्यारा ही होता है , पर जिस बच्चे का जन्म होनेवाला था , वह दादाजी और नानाजी दोनो के घर का पहला बच्चा था , उसके अतिरिक्त लाड प्यार में कोई संशय नहीं था। मेरे मन से सारा भ्रम हट गया , इस बच्चे का जन्म साढे पांच से साढे सात के मध्य लग्नचंदा योग में ही हो सकता है , यही वजह है कि लेबर रूम में इतनी देर हो रही है।
मेरा ध्यान दिल्ली की ओर ही लगा रहा , सात बजे सूचना मिली कि पंद्रह मिनट पहले बच्चे का जन्म हो चुका है , जच्चा और बच्चा दोनो ही स्वस्थ हैं , बच्चे का वजन 4 किलो है। मतलब एक निश्चित समय पर बच्चे का जन्म लेना तय था , और उसी ग्रहस्थिति के हिसाब से उसका पूरा विकास हो चुका था। इस घटना के बाद मेरा भ्रम तो बिल्कुल मिट चुका है , पर इसे और निश्चित करने के लिए मैं एक सर्वे करना चाहती हूं। इसके लिए कम से कम देशभर के 100 अस्पतालों से पूरे दिसंबर 2010 के दौरान जन्म लेने वाले सारे बच्चों का जन्म विवरण , उनका वजन , उनके जन्म से पहले और बाद का स्वास्थ्य , उनके माता पिता , दादा दादी या नाना नानी के बेटे बेटियों , नाती नातिनियों और पोते पोतियों में उनका कौन सा स्थान है , इसके बारे पूरी जानकारी चाहती हूं , मैने इस दिशा में अपने नजदीकी डॉक्टरों और अस्पतालों से बात शुरू कर दी है , क्या आप पाठकों में से भी कोई मेरी मदद कर सकते हैं ??
आखिर कृष्ण जी के इतने संतुलित बाल लीलाओं का राज क्या था ??